अपनी-अपनी करनी का फल | apni apni karni ka phal

इस जनम में नहीं मिले पर भव में मिलता है।
अपनी-अपनी करनी का फल सबको मिलता है।

एक फूल वह है जो माथे पर सजता है,
एक फूल वह है जो अर्थी पर चढ़ता है।
फूल दोनों एक ही उपवन में खिलते हैं,
अपनी-अपनी करनी का फल सबको मिलता है।

एक पत्थर वह है जिसकी मूरत बनती है,
एक पत्थर वह है जो सड़कों पर बिकता है।
पत्थर दोनों एक ही खान से निकले हैं।
अपनी अपनी करनी का फल सबको मिलता है।

एक भाई वो है जो भोगों में रमता हैं,
एक भाई वो है जो मुनिराज बनता है।
भाई दोनों एक ही माता से जन्मे हैं,
अपनी-अपनी करनी का फल सबको मिलता है।

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