अपने घर को देख बावरे | Apne Ghar ko Dekh Baavre

अपने घर को देख *बावरे, सुख का जहाँ खजाना रे।
क्यों पर में सुख खोज रहा है, क्यों पर का दीवाना रे ।।

ये माटी के खेल खिलौने, माटी तन की रानी रे ।
माटी का धन, माटी का तन, माटी की राजधानी है ।।
माटी के पुतले तेरा क्या, माटी भरा बिछोना रे। क्यों पर…

पर परिणति परभाव निरखता, आतम तत्त्व को भूला है।
पर भावों में सुख दुख माने, झूल रहा भव झूला है ।।
सहजानन्दी रूप तुम्हारा, जग सारा वेगाना रे। क्यों पर…

चिन्तामणि सा नर-भव पाया, कल्पवृक्ष सा जिनश्रुत रे ।
गँवा रहा है रतन अमोलक, क्यों विषयों में फँसता रे ।।
विखर जायेगा एक दिन तेरा, सारा ताना वाना रे । क्यों पर…

घूम लिये हो चारों गति में अब तो निज का ध्यान धरो ।
विषय हलाहल बहुत पिया है, अब समता रस पान करो ।।
अपने गुण की छाँव बैठ जा, बहुत दूर नहीं जाना है। क्यों पर…

त्रस स्थावर पर्याय बदलता, पिये मोह की `हाला रे ।
कभी स्वर्ग के आँगन देखे, कभी नरक की ज्वाला रे ।।
चौरासी के पथिक तुम्हारा, शिवपुर सही ठिकाना रे। क्यों पर…

*बावरे: पागल, मूढ़, अज्ञानी
`हाला:- मदिरा।

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