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इच्छाओं को जीतने में :-
~ मूलकारण - सम्यग्दर्शन
~ प्रबल कारण - ज्ञानाभ्यास
~ साक्षात कारण - संयम एवं ब्रह्मचर्य है । -
शील और सहजता ही जीवन के श्रृंगार हैं । बाह्य श्रृंगार तो विकारों का पोषक ही समझो ।
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जो जीव विशुद्ध ज्ञानदर्शनस्वभावी शुद्धात्मा के सम्यक श्रद्धान, ज्ञान अनुष्ठान रूप निश्चय मोक्षमार्ग से निरपेक्ष शुभ अनुष्ठानरूप व्यवहार को ही मोक्षमार्ग मानता है वह उसके द्वारा देव लोक के क्लेशों को पाता हुआ संसार में भ्रमता है परन्तु जो शुद्धात्मानुभूति रूप निश्चय मोक्ष को माने और निश्चय मोक्षमार्ग के अनुष्ठान में असमर्थ होने से निश्चय साधक शुभानुष्ठान करे वह सराग सम्यग्दृष्टि है और परम्परा से मोक्ष पाता है ।
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सावधान रहें, भयभीत नहीं ।
कर्तव्य करें, कर्तृत्व नहीं ।
प्रसन्न रहें, स्वच्छन्द नहीं ।
दृढ़ रहें, कंजूस नहीं ।
मितव्ययी बनें, कंजूस नहीं ।
भविष्य का नियोजन करें, व्यर्थ चिन्ता नहीं । -
पर्यायदृष्टि ही संसार (दुःख) का मूल है ।
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भयभीत को भी मरना पड़ता है अतः निर्भयता पूर्वक देह छोड़ें ।
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अन्याय करना क्रूरता है और दुःखी होते हुए अन्याय सहना कायरता ।
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सादगी और संतोष पूर्ण जीवन में श्रेष्ठ विचार जाग्रत होते हैं ।
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उत्तजित एवं दुःखी होना स्वयं को कमजोर करना है ।
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सम्यक विचारों से बड़ी से बड़ी उलझनें सहज ही सुलझ जाती हैं ।