(तर्ज- आज हम जिन राज तुम्हारे…)
अहो ! अहो ! जिननाथ, आपकी शरण में आये।
शरण में आये, शरण में आये ।।टेक ।।
प्रभो आपके दर्शन पाकर,सहजानन्द विलसाये।
भेदज्ञान की कला प्रकाशे,संकट सर्व नशाये।।1।।
प्रभु समान ही अक्षय प्रभुता,अन्तर माँहि दिखाये।
ऐसा हो पुरूषार्थ सु परिणति,निज में ही रम जाये।2।।
सहज अकर्ता ज्ञाता जिनवर,महिमा कही न जाये।
दर्शन करके वचन श्रवण कर, भवि शिवपद प्रगटाये।3।।
भोगों की अब चाह न किंचित् वीतराग पद भाये।
रहूँ परम निर्द्धन्द जिनेश्वर,आकुलता मिट जाये।4।।
साँचे तारणहार मिले हैं, भक्ति हृदय उमगाये।
हो अन्तर्मुख तृप्त स्वयं में, शाश्वत प्रभु हम पायें ।।5।।
Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी आत्मन्