कुन्दकुन्द आचार्य गुरुवर कैसे हुए हैं ? वो कैसे रहते थे?
छत्तीस गुणों से शोभित गुरुवर पूज्य हुए हैं, आचार्य हुए हैं।।
दीक्षा वांडक जीवों को जो दीक्षा देते थे।-2
जिनके अनुशासन में सारे साथ्ु रहते थे।-2
मुक्ति पथ पर चले, चलाते पूज्य हुए हैं, आचार्य हुए हैं।।
आत्मा में लीन रहें, उपदेश देते थे।-2
प्रायश्चित्त विधि से साथ्रु को जो शुद्ध करते थे।।
मुनिसंघ के नायक प्राय: मौन रहते थे, आचार्य हुए हैं।।
सीमंधर की सभा विराजे, ओऑंकार सुनते थे।-2
पोन्नुर में आकर के परमागम लिखते थे।।
पाँच नाम से शोभित गुरुवर उपकारी हुए हैं, आचार्य हुए हैं।।
अमृतचंद जयसेन टीकाकार तुम्हारे हैं ।।-2
टीका पढ़ -पढ़ कहान गुरु बलिहारी जाते थे।
स्वर्णपुरी में अमृत बरसा, धन्य भाग्य हमारे हैं, हम नमते जाते हैं ।।
Artist: बाल ब्र. श्री सुमत प्रकाश जी
Source: बाल काव्य तरंगिणी