आचार्य कुंदकुंद जो | Acharya Kund-kund jo

आचार्य कुंदकुंद जो भारत में न आते
अध्यात्म समयसार कहो कौन सुनाते-२।।टेक।।

रच करके कौन देता आत्म ख्याति समयसार?
ऐसे अनेक ग्रंथ भेद ज्ञान के भंडार।।
उनके बिना हृदय में शांति कौन दिलाते।।१।।

जलती कषाय अग्नि सहज भाव जलाती।
कर्मों के महाबंध को आत्मा से कराती।।
शांति का सहज प्याला कहो कौन पिलाते।।२।।

सम्यक्त्व बिना मोह ने भववन में घुमाया
सम्यक्त्व बिना आत्मा को उसने रुलाया।
सम्यक्त्व आत्मा की निधि कौन बताते ।।३।।

है जगत के संबंध कोई पार न पाया
है सब अनित्य, नित्य एक भी नहीं पाया
होता न सगा आप जिसे अपना बनाते ।।४।।

7 Likes

इस भजन के बोल और रिकार्डेड भजन के बोल मेल नहीं खा रहे हैं |
शुद्ध बोल :

आचार्य कुंदकुंद जो भारत में न आते
अध्यात्म समयसार कहो कौन सुनाते
ऐसे महा मुनिराज जो भारत में ना आते,
शुद्धात्मा की बात कहो कौन सुनते ||टेक||

रच करके कौन देता आत्म ख्याति समयसार?
ऐसे अनेक ग्रंथ भेद ज्ञान के भंडार।।
रत्नत्रय गुणों से भरा ह्रदय तुम्हारा,
उनके बिना हृदय में शांति कौन दिलाते।।१।।

जलती कषाय अग्नि सहज भाव जलाती।
कर्मों के महाबंध को आत्मा से कराती।।
तुम्हारी छवि देख निज की महिमा ही होती,
शांति का सहज प्याला कहो कौन पिलाते।।२।।

सम्यक्त्व बिना मोह ने भववन में घुमाया
सम्यक्त्व बिना आत्मा को उसने रुलाया।
सम्यक्त्व आत्मा की निधि कौन बताते
अध्यात्म सुधा सार कहो कौन पिलाते।।३।।

1 Like