अब हम आतम को पहिचान्यौ |
जब ही सेती मोह सुभट बल, छिनक एक में भान्यौ || टेक ||
राग विरोध विभाव भजे झर, ममता भाव पलान्यौ |
दरशन ज्ञान चरन में चेतन, भेद रहित परवान्यौ || १ ||
जिहि देखैं हम अवर न देख्यो, देख्यो सो सरधान्यौ |
ताकौ कहो कहैं कैसे करि, जा जानै जिम जान्यौ || २ ||
पूरब भाव सुपनवत देखे, अपनो अनुभव तान्यौ |
‘द्यानत’ ता अनुभव स्वादत ही, जनम सफल करि मान्यौ || ३ ||
Artist- पं. द्यानतराय जी