आयो-आयो रे हमारो स्वकाल | Aayo Aayo re hamaro swakaal

(तर्ज : आयो-आयो रे हमारो… )

आयो-आयो रे हमारो स्वकाल, सहज पद पायो है।
जागो-जागो रे हमारो महाभाग्य, ज्ञायक प्रभु पायो है॥ टेक ॥

धन्य घड़ी जब रुचि जागी, गुरु उपदेश सुहाय।
दृष्टि अन्तर्मुख हुयी, शुद्धातम दरशाय॥1॥

ज्ञान मात्र निज भाव में, शक्तियाँ रही उछलाय।
अहो! सहज तृप्ति मिली, आनन्द उर न समाय॥2॥

अहो! पूर्णता स्वयं की, देख स्वयं में आप।
निर्वांछक आनंदमय, हुआ स्वयं निष्पाप॥3॥

नहीं परवाह सु जगत की, जागो भेद-विज्ञान।
पर निरपेक्ष सु तत्त्व है, निज में निज कल्याण॥ 4॥

करना-मरना मिट गया, सहज हुआ निष्काम।
होवे निज में लीनता, पाऊँ शिव अभिराम॥5॥

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरुप स्मरण