आत्मा ऐसा ही है…
ज्ञान दर्शन लक्षण में पाया, जिसमें जाननहार जनाया ।
आत्मा ऐसा ही है ॥टेक ॥
अरिहंत मैं ही, प्रभु सिद्ध मैं ही, आचार्य उपाध्याय साधु मैं ही ।
पंच परमेष्ठी पद मैंने पाया, जिसमें जाननहार जनाया ॥
आत्मा.…………… ॥1॥
केवल ज्ञानमयी, केवल दर्शनमयी, केवल सुखमयी, केवल वीर्यमयी ।
अनंत गुणमयी प्रभु मैंने पाया, जिसमें जाननहार जनाया ॥
आत्मा.………… ॥2॥
शुद्ध द्रव्य मेरा, शुद्ध गुण है मेरा, शुद्ध पर्याय रूप परिणमन मेरा |
शुद्धात्म मेरी दृष्टि में आया, जिसमें जाननहार जनाया ॥
आत्मा.……………… ॥3॥
- मंगल भक्ति सुमन (आध्यात्मिक भक्ति खंड)