आतम जाना, मैं जाना ज्ञानसरूप
पुद्गल धर्म अधर्म गगन जम, सब जड़ मैं चिद्रूप ।।आतम. ।।१ ।।
दरब भाव नोकर्म नियारे, न्यारो आप अनूप ।।आतम. ।।२ ।।
`द्यानत’ पर-परनति कब बिनसै, तब सुख विलसै भूप ।।आतम. ।।३ ।।
Artist: कविवर द्यानतराय जी
आतम जाना, मैं जाना ज्ञानसरूप
पुद्गल धर्म अधर्म गगन जम, सब जड़ मैं चिद्रूप ।।आतम. ।।१ ।।
दरब भाव नोकर्म नियारे, न्यारो आप अनूप ।।आतम. ।।२ ।।
`द्यानत’ पर-परनति कब बिनसै, तब सुख विलसै भूप ।।आतम. ।।३ ।।
Artist: कविवर द्यानतराय जी
MEANING
I am knowledgeable
I have known this form of me.
Pudgal, dharma, adharma, sky and time are all non-living and I am a living being.
Dravya karma, bhava karma, nokarma are all unique to me. I am a different, different form than these.
DhyanatRai says that you keep pretending to destroy the culmination of you, that is, by synonymous with Pudgal, you will get eternal happiness in destroying that result, that is, then you will be the true master of your eternal happiness.
अर्थ
मैं ज्ञान स्वरूपी हूँ। मैंने अपना यह स्वरूप जान लिया है।
पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल सब जड़ पदार्थ हैं और एक मैं जीव चैतन्य स्वरूप हूँ।
द्रव्य कर्म, भाव कर्म, नोकर्म ये सब मुझसे न्यारे हैं। मैं इनसे भिन्न, अलग ही अनुपम स्वरूप हूँ।
द्यानात राय कहते हैं कि तू पर की परिणति अर्थात् पुद्गल के साथ उसकी पर्याय धारणकर विनाश का नाटक करता रहता है उस परिणाम का नाश करने में तुझे अनन्त सुख की प्राप्ति होगी अर्थात् तब तू तेरे अनन्तसुख का यथार्थ स्वामी होगा।