Divya
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आज मैं परम पदारथ पायौ, प्रभुचरनन चित लायौ ।।
अशुभ गये शुभ प्रगट भये हैं, सहज कल्पतरु छायौ।।(1)
ज्ञानशक्ति तप ऐसी जाकी, चेतनपद दरसायो।।(2)
अष्टकर्म रिपु जोधा जीते, शिव अंकूर जमायौ।।(3)
दौलत राम निरख निज प्रभो को अरु आनन्द न समायो ।।(4)
Artist - पंडित श्री दौलतराम जी
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अर्थ:- अहो, आज मेरा भगवान् के चरणों में चित्त लग गया है और मुझे परमपदार्थ की प्राप्ति हो गयी है।
1.भगवान् के चरणों मे चित्त लगाने से आज मेरे अशुभ भाव नष्ट हो गए हैं और शुभ भाव प्रकट हो गए हैं , अतः जीवन में सहज ही कल्पवृक्ष की छाया हो गयी है ।
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भगवान् के चरणों में चित्त लगाने से ही आज मुझे ऐसे चैतन्य पद के दर्शन हुए हैं, जिसमें अपार ज्ञान - वैराग्य शक्ति भरी हुई है।
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आज मैंने कर्म शत्रु के अष्ट योद्धाओं को जीत लिया है और मोक्ष का अंकुर स्थापित कर दिया है।
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अर्थ:- आज मुझे परम पदार्थ की/श्रेष्ठ पदार्थ की प्राप्ति हुई है, बोधि हुई है कि मेरा चित्त प्रभु के चरणों में लगा है।
अब सब अशुभ संयोग मिट गए हैं, समाप्त हो गए हैं और शुभ संयोग प्रकट हुए हैं जिससे मुझे प्रभु रूपी कल्पवृक्ष सहज ही मिल गया है।
जिनका ज्ञान व तप ऐसा है कि उनके दर्शन से अपने आत्मस्वरूप का भान/दर्शन होने लगा है– ऐसे प्रभु के चरणों में चित्त लगा है।
जिन्होंने आठ कर्म रूपी योद्धा शत्रुओं को जीतकर मोक्षरूपी अंकुर को दृढ़ किया है ऐसे प्रभु के चरणों में मेरा चित्त लगा है।