(तर्ज-आज हम जिनराज तुम्हारे…)
आज हम जिनराज तुम्हारी भक्ति रचायें। टेक।।
वीतराग सर्वज्ञ प्रभो हो, नासादृष्टि लगाये।
अद्भुत शान्तिमयी छवि तेरी, सबके मन को भाये।।1।।
सभी द्रव्य स्वयमेव पूर्ण हैं, कोई कुछ नहिं चाहे।
स्वयं परिणमन होता सबका, आज समझ में आये।।2।।
द्रव्यदृष्टि से तुम सम ही हूँ, जान हर्ष मन छाये।
पर्याय शुद्धि हेतु प्रभु जी, परम पुरुषार्थ जगाये ।।3।।
पुण्योदय भी मीठा विष है, इसमें नहिं अटकायें।
वीतराग विज्ञान भावमय, मम परिणति हो जाये ।।4।।
यही भावना है अब मेरी, सम्यग्दर्शन पायें ।
ज्ञान चरित उन्नत कर अपना, जीवन सफल बनायें ।।5।।
Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’