आज गिरिराज निहारा, धनभाग हमारा। Aaj GiriRaj Nihara, DhanBhag Humara

आज गिरिराज निहारा, धनभाग हमारा।
श्रीसम्मेद नाम है जाको भूपर तीरथ भारा ॥ आज. ॥
तहां बीस जिन मुक्ति पधारे, अवर मुनीश अपारा।
आरजभूमिशिखामनि सोहै, सुरनरमुनि-मनप्यारा ॥ १ ॥ आज. ॥

तहं थिर योग धार योगीसुर, निज परतत्त्व विचारा ।
निज स्वभावमें लीन होयकर, सकल विभाव निवारा ॥ २ ॥ आज. ॥

जाहि जजत भवि भावनतैं जब भवभवपातक टारा।
जिनगुन धार धर्मधन संचो, भव- दारिदहरतारा ॥ ३ ॥ आज. ।।

इक नभ नवइक वर्ष (१९०१) माघवदि, चौदश बासर सारा।
माथ नाय जुत साथ ‘दौल’ ने, जय जय शब्द उचारा ॥ ४ ॥ आज. ॥

अर्थ:
आज गिरिराज (सम्मेदशिखर) के दर्शन किए हैं, अतः धन्य भाग्य हैं हमारे । इसका नाम सम्मेदशिखर हैं, जो इस पृथ्वी पर बहुत बड़ा तीर्थ है। यहाँ से बीस तीर्थंकर और अपार मुनिजन मुक्त हुए हैं। इस भूमि का कण-कण मिट्टी, पहाड़ों की चोटियाँ अत्यंत शोभित हैं जो देवों को, मनुष्यों को व मुनियों के मन को अत्यन्त प्यारी लगती हैं।

यहाँ मुनिजन स्थिर योग धारणकर भेद-ज्ञान का, स्व-पर का चिंतवन करते हैं और फिर अपने स्वभाव में मगन होकर, लीन होकर समस्त अन्य भावों को छोड़ देते हैं।

भव्यजन भावसहित वंदना करके भव-भव के पापों का नाश करते हैं, उन्हें टाल देते हैं। जिनेन्द्र के समान गुणों को धारणकर धर्मरूपी संपत्ति का संचय करते हैं, जिससे भव-भव के दुःख-दारिद्र दूर हो जाते हैं। माघ वदि चौदस (विक्रम संवत्) उन्नीस सौ एक के दिन दौलतराम जी ने शीश नमाकर सबके साथ जय- जयकार किया अर्थात् भगवान ऋषभदेव के मोक्ष कल्याणक के दिन कवि ने इस तीर्थ की भक्तिपूर्वक वंदना की।

रचयिता: पंडित श्री दौलतराम जी
अर्थ सोर्स: दौलत भजन सौरभ