आज गिरिराज के शिखर सुन्दर सखी | aaj giriraj ke shikhar sundar sakhi

राग- पंचम

आज गिरिराज के शिखर सुन्दर सखी
होत है अतुल कौतुक महा मनहरन॥
नाभि के नंद को, जगत के चंद को,
लेगये इंद्र मिलि, जन्ममंगल करन॥ आज. ॥

हाथ-हाथन धरे, सुरन-कंचन घरे,
छीरसागर भरे, नीर निरमल बरन।
सहस अरु आठ गिन, एकही बार जिन,
सीस सुर ईशके, करन लागे ढरन॥ १ ॥ आज. ।।

नचत गीत सुरसुंदरी, रहस रससों भरी,
गीत गावैं अरी, देहि ताली करन।
देव-दुंदुभि बजेैं, वीन वंशी सजैं,
एकसी परत, आनंदघन की भरन॥२|| आज.||

इंद्र हर्षित हिये, नेत्र अंजुलि किए,
तृपति होत न पिये, रूप अमृत झरन।
दास ‘भूधर’ भनै, सुदिन देखे बनै,
कहि थके लोक लख, जीभ न सके वरन॥ ३ ॥ आज. ।॥

भूधर भजन सौरभ

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आज गिरिराज के शिखर
पं. भूधरदास जी

हे सखी! आज पर्वतराज के सुंदर शिखर पर, मन को लुभाने वाला अनुपम, महा कौतुक (उत्सव) हो रहा है। सौधर्म इन्द्रादि सहित सभी देव इस जगत के इन्द्र (तीन लोक के नाथ – तीर्थंकर) नाभिराय के पुत्र श्री ऋषभदेव को उनका जन्मकल्याणक मनाने हेतु सुमेरु पर्वत पर लेकर गये हैं।

पंक्तिबद्ध देवगण अपने-अपने हाथों में क्षीरसागर के निर्मल जल से भरे एक सौ आठ सुवर्ण कलश धरकर एकसाथ इन्द्रों के भी इन्द्र अर्थात बालक तीर्थंकर प्रभु के मस्तक पर कलशाभिषेक करने ले गये हैं॥ 1 ॥

स्वर्ग की सुन्दर-सुन्दर देवांगनायें आनन्द रस के साथ ताली बजाते हुए मंगलगान एवं नृत्य कर रही हैं। देवगण दुंदुभि, वीणा, वंशी इत्यादि अनेकों वाद्ययंत्र की एक ध्वनि से आनन्द में मग्न होकर भगवान का जयघोष कर रहे हैं ॥ 2 ॥

सौधर्म इन्द्र, जिसके निमित्त से भगवान के सभी कल्याणक मनाये जाने वाले हैं, उसका हृदय अत्यन्त हर्षित है, वह इतना आनन्दित है जिसकी कोई सीमा नही, वह भगवान को सहस्त्र नेत्र बनाकर देख रहा है, तब भी बालक के आश्चर्यकारी रूप को देखने में तृप्त नही हो रहा है। कविवर भूधरदास जी कहते हैं कि हम सब तो उनके दास अर्थात सेवक/ अनुयायी हैं, यह शुभ दिन कोटि पुण्य के उपार्जन के बाद देखने को मिला है। तीर्थंकर भगवान के इस मनोहारे दृश्य एवं उनके समस्त गुणों का बखान करने में सम्पूर्ण लोक भी समर्थ नही है, जिह्वा थक जायेगी, स्याही सूख जायेगी परन्तु वर्णन कभी खत्म नही होगा।

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