आहार निर्देशिका | Aahar Nirdeshika

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दातार की पात्रता एवं शुद्धता

दातार के सप्त गुण -

  1. श्रद्धा
  2. शक्ति
  3. अलुब्धता
  4. भक्ति
  5. ज्ञान
  6. दया
  7. क्षमा

दातार की पात्रता एवं शुद्धता

  1. नाम निक्षेप से जैन हो या जैनत्व दीक्षा लेने वाला हो - स्थूलत: वीतरागी देव-शास्त्र-गुरूके प्रति श्रद्धावान हो।

  2. प्रत्यक्ष रुप से मद्य-माँस-मधु, अण्ड़ा, पंच उदम्बरों आदि का त्यागी अर्थात अष्ट मूलगुण धारी हो।

  3. लोकनिंद्य व्यापार न करता हो।

  4. शील प्रतिज्ञा धारक हो, स्थूलत: जुआ आदि सप्त व्यसनों एवं गर्भपातादि निंद्य कार्योका त्यागी हो |

  5. पान, तम्बाकू, पान मसाला, गुटका एवं अन्य नशीले पदार्थों का, बाजारू पेय, आसवारिष्ट, सीरप आदि औषधियाँ, दूषित एवं हिंसक सौन्दर्य प्रसाधन (लिपिस्टिक, क्रीम, पाउडर, शैम्पू, नैल पॉलिस, इत्र, स्प्रे आदि), चमड़ा, रेशम आदि का त्याग करें।

  6. जमीकन्द, अचार, रात्रि भोजन, होटल का भोजन, ढ्विदल, बैंगन, लहसुन, प्याज आदि का त्याग करें, सदाचार नियमावली का यथाशक्ति पालन करें।

  7. देव दर्शन आवश्यक है।

  8. श्वेत कुष्ठ या अन्य विशेष रोग युक्त, तेज जुकाम जिसमें से नाक बहती हो या स्राव बहने वाला घाव तीव्र चर्म रोग जिसमें से पानी बहता हो जिसे बार-बार साफ करना पड़े या पट्टी बंधी हो ऐसा पुरुष या स्त्री तथा पांच माह से अधिक गर्भवती या विशेष छोटे बच्चे वाली जिसको दूसरा न संभाल सके ऐसी स्त्री चौके में न आवे।

  9. जिसने व्रताचरण नहीं लिया हो ऐसी स्त्री या रजस्वला स्त्री जब तक देव दर्शन न करे तब तक पानी आदि भी न छुए, न दूध दुहे।

  10. बाल गंदे या बिखरे न हों, कंघी-चोटी स्नान से पूर्व ही कर लेवें। शुद्ध वस्त्र पहिनकर कंघी-चोटी करना, पहले से न सोधे हुए अनाजादि सोधना वर्जित है।

  11. धुले हुए वस्त्रों को स्नान से पहले हाथों से छूकर स्नानगृह में न रखें |

  12. लाल, काले व गहरे रंग के सर्व वस्त्र वर्जित है। ब्लाउज अधिक चुस्त, ऊँचे, ऊची बाँहो या बिना बाँहों के कदापि न पहनें। पीठ, पेट, अंगो का उभार उघडे नहीं होना चाहिए। गर्मी में आधी बाँहो का केवल एक कुछ ढीला ब्लाउज पहनें अंदर कुछ नहीं, सर्दी में भीतर आधा ऊपर से पौन बाँहों का ब्लाउज थोड़ा कसा पहन लें। धोती इतनी नीची न पहने जो जमीन को छूती जाए। शॉल सूती एवं हलके रंग की ओढ़े जो ऊनी जैसी न लगे | चूडियाँ भी गहरे रंग की लाल काली न पहनें एवं अधिक न पहनें। उनका स्पर्श आटे आदि से न हो पावे ऐसा ६यान रखें। उनके छू जाने पर हाथ धोवे।

  13. हाथ-पैर अत्यंत स्वच्छ हों। नाखून बड़े या गंदे न हों। पैरों में चमकदार महावर, गहरी नयी मेहंदी आदि भी न हो ( चौके में प्रवेश
    के समय हाथ-पैर भली प्रकार धोवें। हाथों को आवश्यकतानुसार धोकर भली प्रकार पोंछे।) अधिक आभूषण, बजने वाली पायलें आदि न पहनें।

  14. वस्त्र उचित ढ़ंग से पहनें जिसमें अंगोपांग भली प्रकार ढके रहें। सिर इस प्रकार ढाँके जिसे बारम्बार न संभालना पड़े। बिखरे बाल या खुले सिर न रहें तथा इतना अधिक घूंघट भी न करें जिससे भोजन बनाने में असावधानी हो | धोती के हाथ भोजन से न लगावें।

  15. मलिन, बिस्तर, शौच, यात्रा आदि के वस्त्रों से पानी, दूध आदि न लावें। यदि स्नान संभव न हो तो भी हाथ-पैर धोकर सम्पूर्ण
    वस्त्र अवश्य बदल लें। सर्दी के दिनों में मोटी बनियानें, चादर, खेस आदि अलग रखें, जिससे सर्दी आदि के कारण आकुलता न हो।

  16. लुंगी, मलिन, ऊनी, शौच, बिस्तर, बाजारू या यात्रा के वस्त्रों से प्रासुक पानी या प्रासुक की हुई वस्तुएँ न लावें।

  17. अपने स्वास्थ्य एवं स्वाध्याय, पूजा, प्रवचनों का भी ध्यान रखें, औषधि, पानी आदि लेना हो तो निसंकोच चौके के बाहर भोजन कराने से पहले भी ले सकते है।

  18. प्रात: आने वाली बहिनें भोजन के बाद चलीं जावें, दूसरी बहिनें भोजन के बाद पीछे का काम करा लेवें। कोई शाम को आटा पीसने, सफाई कराने, भोजन परोसने आदि में यथासमय भावना सहित सहयोग अवश्य करें।

  19. उत्तर सावधानी पूर्वक मिष्ट स्वर में दें। कुर्तकों द्वारा गलती को छिपाने का प्रयत्न कदापि न करें। गलतियों के प्रति उपेक्षा पूर्ण
    व्यवहार अक्षम्य अपराध है।

  20. अन्य साधर्मी भाइयों या बहिनों से भी वात्सल्य पूर्ण व्यवहार करें, आते समय या जाते समय उनसे स्वास्थ्यादि की संक्षेप में अवश्य पूछें। चौके की वस्तु देते समय स्नेह से देवें (भावना एवं संकेत के अनुसार पहले, बीच में या बाद में)| अन्य भावना वाले भाई, बहिनों को कार्य में सहयोग हेतु प्रशिक्षित करने का प्रयास करते रहें | छिपाने या उपेक्षा की वृत्ति ठीक नहीं।

  21. सोने से पहले भूल सुधार के उपाय का चिंतन अवश्य करें। कार्य को तुरंत नोटकर पूरा करने का सतत प्रयास करें | यदि कोई परेशानी हो तो सूचित करें| नया कार्य करने से पहले पूछ लें तथा कार्य करके कह दें । आज्ञा पालन में आलस्य न करें या दो-चार दिन बाद फिर मनमानी नहीं करने लग जावें। प्रायश्चित्त बिना, थोड़ी ढेर बाद रुढ़ि की सेवा में लग जाना उचित नहीं है।

  22. शारीरिक सेवा की अपेक्षा मानसिक संतुष्टि का उपाय विशेष रखें।

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विधि:

  1. निमंत्रण भावना पूर्वक करें। व्यवस्थापक से पूर्व (पहले) स्वीकृति लेकर निमंत्रण एक दिन पूर्व दिन में ही कर जावें।
  2. प्रसन्नता पूर्वक भोजन करावें।
  3. भोजन कराते समय विवेक को जाग्रत रखें कब, क्या, कैसे देवें। निर्विचारी एवं मौन होकर न तो काम में ही लगे रहे और न बैठे ही।
  4. भोजन करने वाले के मौन होने से पहले ही जो पूछना हो वह पूछ लें।उनके मौन में ऐसा कुछ न पूछें जिससे उन्हें बोलना पड़े।
  5. खाने-पीने में अधिक न पूछे अपितु वात्सल्य पूर्वक योग्य खाद्य लेने का आग्रह करें।
  6. उच्च त्यागियों जैसा व्यवहार न करते हुए ब्रह्मचारी, साधर्मी जैसा ही व्यवहार करें।
  7. भाई लोग भोजन के समय उपस्थित रहें। भाव पूर्वक भोजन के लिए कहें। बाद में भी शाम के लिए या अन्य आवश्यक कार्यों के लिए अवश्य पूछें |
  8. पाटा आदि व्यवस्थित रूप से लगावें | उपकरण एवं सामग्री व्यवस्थित रुपसे लगाने के बाद ही भोजन के लिए बुलावें।
  9. चौके में प्रवेश के समय पैरों को भली प्रकार धोयें तथा हाथों को धोकर छन्ने से पोछें |
  10. बर्तन काम में लेने से पहले प्रासुक पानी से धोकर पौंछ लें।
  11. पूर्ण शोधित खाद्य सामग्री भी बनाते समय सोधकर बनावें एवं परोसते समय सोधकर परोसें |
  12. शोरगुल न हो। स्वच्छन्दता का वातावरण न बनावें और न अत्यधिक संकोच ही करें| मर्यादा बनाये रखें।
  13. चौके के बाहर भी स्वच्छता एवं व्यवस्था का ध्यान रखें। अयत्नाचार न करें।
  14. भोजन परोसते समय जमीन पर हाथ न रखें, बेलन पैरों पर न रखें। बर्तन, हाथ आदि धोती या पहने हुए वस्त्रों से न पोछें, छन्ने का प्रयोग करें | चाकू, ढक्कनादि एवं पौंछने के छन्ने भी जमीन पर न रखें।
  15. रोटी अंगीठी के अनुसार छोटी-बड़ी बनावें, पतली रोटी कम सेकें, मोटी विशेष सावधानी से सेके। पीछे का आटा अन्तिम रोटी में मिला लेवें। सामग्री इधर-उधर न बिखरावें। दूध, पानी, सब्जी आदि उपयोग पूर्वक (न अधिक, न कम) लें। ऋतु के अनुसार ठंडी या गर्म रखें।
  16. स्थूलत: छ: वस्तुओं से अधिक न परीसें (मात्र मसाले, नीबू, गुड़, नमक, चटनी, औषधि, पानी आदि को छोड़कर)
    परोसने के पश्चात्‌ आहार जल शुद्ध है, भोजन करें | ऐसा कहें।