आचार्य वादीभसिंह जीवन परिचय। Aachary Vadeebhsingh Jeevan Parichay

आचार्य वादीभसिंह

जीवन-परिचय- ‘वादीभसिंह’ आचार्य का मूल नाम नहीं है, किन्तु एक उपाधि है, जो वादियों के विजेता होने के कारण उन्हें प्राप्त हुई थी। उपाधि के कारण ही इन्हें वादीभसिंह कहा जाने लगा।

ओडमदेव नाम से पण्डित के. भुजबली शास्त्री ने अनुमान लगाया है कि ये वादीभसिंह जन्मत: ओडेम या उड़िया सरदार होंगे।

आदिपुराण के जिनसेनाचार्य ने वादीभसिंह का स्मरण करते हुए उन्हें उच्च कोटि का कवि, वाग्मी और गमक बतलाया है। पार्श्वनाथचरित के रचयिता वादिराजसूरि ने भी वादीभसिंह का उल्लेख किया है और उन्हें स्याद्वाद की गर्जना करनेवाला तथा कवियों का अभिमान चूर-चूर करनेवाला बतलाया है।

इन उल्लेखों से वादीभसिंह एक प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान ज्ञात होते हैं। उनकी स्याद्वादसिद्धि ग्रन्थ उन्हें उच्चकोटि का दार्शनिक सिद्ध करती है। गद्य चिन्तामणि के अन्तिम दो पद्यों से स्पष्ट है कि उनका नाम ओडम देव था।

वादीभसिंह अपने समय के प्रतिभा सम्पन्न विद्वान आचार्य थे। उनके कवित्व और गमकत्वादि की प्रशंसा अनेक विद्वानों ने की है। वे तार्किक विद्वान थे। मल्लिषेण प्रशस्ति में मुनि पुष्पसेन को आचार्य अकलंकदेव का सधर्मा लिखा है और वादीभसिंह ने उन्हें अपना गुरु बतलाया है। इससे स्पष्ट है कि वादीभसिंह आचार्य अकलंक देव के उत्तरवर्ती विद्वान हैं। वादीभसिंह का समय ईसा की 8वीं शताब्दी का अन्त और 9वीं शताब्दी का पूर्वार्ध जान पड़ता है।

रचना-परिचय- वादीभसिंह की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं-

1. स्याद्वादसिद्धि- इस ग्रन्थ में 14 अधिकार हैं। इन अधिकारों में अनुष्टुप् छन्द में स्याद्वाद विषय का अच्छा वर्णन है। यद्यपि यह ग्रन्थ अपूर्ण है, क्योंकि इसके अन्तिम प्रकरण में साढ़े छह कारिकाएँ ही पायी गयी हैं। इस प्रकरण की अपूर्णता के कारण कोई पुष्पिका वाक्य भी उपलब्ध नहीं होता।

2. क्षत्रचूडामणि- यह उच्चकोटि का नीतिकाव्य ग्रन्थ है। भारतीय काव्य साहित्य में इस प्रकार का महत्त्वपूर्ण नीतिकाव्य अन्यत्र देखने में नहीं आया है। इसकी सरस सूक्तियाँ और उपदेश हृदय स्पर्शी है। यह पद्यात्मक सुन्दर रचना है। इसमें महाकवि वादीभसिंह ने क्षत्रियों के चूडामणि महाराज जीवंधर के पावन चरित्र का अत्यन्त रोचक ढंग से वर्णन किया है। कुमार जीवंधर भगवान महावीर के समकालीन थे। उन्होंने शत्रु से अपने पिता का राज्य वापिस ले लिया और उसका उचित रीति से पालन किया। अन्त में संसार के भोगों और देह से विरक्त हो भगवान महावीर के सन्मुख दीक्षा लेकर तपश्चरण द्वारा आत्म शुद्धि कर अविनाशी पद प्राप्त किया। ग्रन्थ का कथानक आकर्षक और भाषा सरल संस्कृत है।

3. गद्यचिन्तामणि- गद्यचिन्तामणि एक गद्यकाव्य है। इसकी भाषा प्रौढ़ है। कवि वादीभसिंह ने गद्यचिन्तामणि जैसा उत्कृष्ट गद्यकाव्य लिखकर जैन संस्कृत काव्य को अमरत्व प्रदान किया है। उनके द्वारा रचा गया गद्यचिन्तामणि ग्रन्थ सभा का भूषण स्वरूप था। कवि ने इसके कथानक को 11 लम्बों (अध्यायों) में विभक्त किया है। कवि की गद्यशैली ‘कादम्बरी’ के समान है। कवि ने इस कथा में काव्यत्व का पूर्णतया समावेश किया है। पात्रों के चरित्र भी जीवन्तरूप में चित्रित हुए हैं। इस कृति में अप्रतिम कल्पना - वैभव, वर्णन-पटुता और मानव- मनोवृत्तियों का मार्मिक निरीक्षण पाया जाता है।

सोर्स: प्रमुख जैन आचार्यों का परिचय