समयसार की गाथा 94-95

ये कुछ नाइंसाफी सी प्रतीत हो रही है,
:thinking::thinking:

कुछ भी जानेगा तो उसमें तन्मय होगा ही , और मैं तो शुद्धात्मा के विचार की बात कर रहा हूँ। उसमे तन्मय होगा या नही…?

दूसरी बात, यह भी कि टोडरमल जी ने कहा कि मिथ्यादृष्टि का सारा ज्ञान मिथ्या…! , तो आगमाश्रित ज्ञान का हवाला देकर बचने की कोशिश क्यों की जा रही है …?

@jinesh ji से भी अनुरोध करता हूँ , क्या न्याय के आलोक में इसका कोई उत्तर हैं…?

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