उपयोग कि इस प्रकार की व्याख्या सम्पूर्ण जिनागम में पढ़ने-सुनने को नही मिलती ।
यहां आचार्य ने उपयोग की एक नयी श्रेणी का निर्माण किया है
त्रिविध उपयोग । ऐसा सुनते आएं हैं ।
मेरा प्रश्न है कि यहाँ आचार्य ने /-
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जीव को ही उपयोग संज्ञा दी है, तो जीव के क्या सभी परिणामों पर उपयोग इस संज्ञा का उपचार बनता है…?
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मेरे ख्याल में ये कोई नई श्रेणी नही , अपितु सर्व सामान्य श्रेणी को अन्तरगर्भित किये हुए है , क्योंकि उपयोग की परिभाषा कही है कि चेतना के परिणाम विशेष को उपयोग कहतें हैं , तो जीव के श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र ये तीनों ही चेतना के परिणाम हैं…।
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आचार्य ने मिथ्यादर्शन-अज्ञान-अविरति को उपयोग में डाला , तो क्या सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र को भी उपयोग की श्रेणी में रखा जा सकता है…?
कृपया इन तीनों कथनों की न्याय के आलोक में समीक्षा करें ।
@jinesh ji…आदि सभी विद्वज्जन ।