छह सामान्य गुण (सर्वज्ञदेव कथित छहों द्रव्यों की स्वतंत्रता दर्शक)
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अस्तित्व गुण
कर्त्ता जगत का मानता, जो ‘कर्म या भगवान’ को।
वह भूलता है लोक में, अस्तित्व गुण के ज्ञान को।।
उत्पाद व्यय युत वस्तु है, फिर भी सदा ध्रुवता धरे।
अस्तित्व गुण के योग से, कोई नहीं जग में मरे।। -
वस्तुत्व गुण
वस्तुत्व गुण के योग से, हो द्रव्य में स्व-स्व क्रिया।
स्वाधीन गुण पर्याय का ही, पान द्रव्यों ने किया।।
सामान्य और विशेषता से, कर रहे निज काम को।
यों मानकर वस्तुत्व को, पाओ विमल शिवराज का।। -
द्रव्यत्व गुण
द्रव्यत्व गुण इस वस्तु को, जग में पलटता है सदा।
लेकिन कभी भी द्रव्य तो, तजता न लक्षण सम्पदा।।
स्व-द्रव्य में मोक्षार्थी हो, स्वाधीन सुख लो सर्वदा।
हो नाश जिससे आजतक की, दुःखदायी भव कथा।। -
प्रमेयत्व गुण
सब द्रव्य-गुण प्रमेयत्व से, बनते विषय हैं ज्ञान के।
रुकता न सम्यग्ज्ञान पर से, जानिये यों ध्यान से।।
आत्मा अरुपी ज्ञेय निज, यह ज्ञान को जानता।
है स्व-पर सत्ता विश्व में, सुदृष्टि उनको जानता।। -
अगुरूलघुत्व गुण
यह गुण अगुरूलघु भी सदा, रखता महत्ता है महा।
गुण द्रव्य को पर रूप यह, होने न देता है अहा।।
पर्याय गुण निज सर्व ही, रहते सतत् निज भाव में।
कर्ता न हर्ता अन्य कोई, यों लखो निजभाव में।। -
प्रदेशत्व गुण
प्रदेशत्व गुण की शक्ति से, आकार द्रव्य धरा करे।
निज क्षेत्र में व्यापक रहे, आकार भी पलटा करे ।।
आकार है सब के अलग, हो लीन अपने ज्ञान में।
जानो इन्हें सामान्य गुण, रक्खो सदा श्रद्धान में।।