वीतराग-विज्ञान पाठमाला भाग-१ | Vitrag Vigyan Pathmala Part -1

पाठ 7 : जम्बूस्वामी

कविवर पं. राजमलजी पाण्डे ( व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व )

“पांडे राजमल्ल जिनधर्मी, नाटक समयसार के मर्मी"

- बनारसीदास

राजस्थान के जिन प्रमुख विद्वानों ने आत्म-साधना के अनुरूप साहित्यआराधना को अपना जीवन अर्पित किया है, उनमें पं. राजमलजी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनका प्रमुख निवासस्थान ढूँढाहढ़ प्रदेश का वैराट नगर और मातृभाषा ढूँढारी रही है। संस्कृत और प्राकृत भाषा के भी ये उच्चकोटि के विद्वान् थे।
ये १७वीं सदी के प्रमुख विद्वान् बनारसीदास के पूर्वकालीन थे। इनका पहिला ग्रन्थ जम्बूस्वामी चरित्र सं. 1633 में पूर्ण हुआ था, अतः इनका जन्म निश्चिततया १७वीं सदी के प्रारंभ में ही हुआ होगा।
इनकी प्रतिभा बहुमुखी थी। ये कवि, टीकाकार, विद्वान् और वक्ता सब एक साथ थे। इनकी कविता में काव्यत्व के साथ-साथ अध्यात्म तथा गंभीर तत्त्वों का गूढ विवेचन है। इनके द्वारा रचित निम्नलिखित रचनाएँ प्राप्त हैं:

  1. जम्बूस्वामी चरित्र
  2. छंदोविद्या
  3. अध्यात्मकमलमार्तण्ड
  4. तत्त्वार्थसूत्र टीका
  5. समयसारकलश बालबोध टीका
  6. पंचाध्यायी

प्रस्तुत पाठ आपके द्वारा रचित जम्बूस्वामी चरित्र के आधार पर लिखा गया है।


जम्बूस्वामी

बहिन - अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर पूर्ण वीतरागी और सर्वज्ञ थे। उनके बाद भी कोई पूर्ण वीतरागी और सर्वज्ञ हुआ ?
भाई - हाँ! हाँ !! क्यों नहीं हुए ? उनके बाद गौतम स्वामी, सुधर्माचार्य और जम्बूस्वामी पूर्ण वीतरागी और केवलज्ञानी हुए। इस युग के अन्तिम केवली जम्बूस्वामी ही हैं।

बहिन - तो महावीर स्वामी के समान जम्बूस्वामी भी राजकुमार होंगे ?
भाई - नहीं बहिन, वे तो राजगृह नगर के एक राजमान्य सेठ के पुत्र थे। उनके पिता का नाम अर्हद्दास और माता का नाम जिनमती था। जम्बूकुमार का जन्म फाल्गुन की पूर्णिमा को हुआ था।
श्रेष्ठिपुत्र जम्बूकुमार का राजा श्रेणिक के दरबार में एवं तत्कालीन समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान था। नगर के अनेक श्रीमंत अपनी गुणवती कन्याओं की शादी जम्बूकुमार से करना चाहते थे तथा चार कन्याओं की सगाई भी उनसे पक्की हो चुकी थी पर…।

बहिन - पर क्या ?
भाई - पर वे तो बचपन से ही वैराग्य रस में पगे हुए थे। उनका मन तो आत्मा के अनन्त अतीन्द्रिय आनंद के लिए तड़प रहा था, अतः उन्होंने शादी करने से साफ इन्कार कर दिया।

बहिन - इन्कार कर दिया ? पक्की सगाई तोड़ दी ? विवाह नहीं किया ?
भाई - वे तो यही चाहते थे कि विवाह न करूँ पर जब कन्याओं ने यह समाचार सुना तो वे भी बोलीं कि यदि शादी होगी तो जम्बूकुमार से अन्यथा नहीं।

बहिन - फिर…?
भाई - फिर क्या ? चारों लड़कियों के माता-पिता और जम्बूकुमार के माता-पिता ने अति आग्रह किया कि चाहे तुम बाद में दीक्षा ले लेना पर शादी से इन्कार न करो, क्योंकि वे जानते थे कि सर्वांगसुन्दरी कन्यायें अपने रूप और गुणों द्वारा जम्बूकुमार का मन रंजायमान कर लेंगी और फिर जम्बूकुमार वैराग्य की बातें भूल जावेंगे, पर …

बहिन - पर क्या ?
भाई - पर जम्बूकुमार ने शादी करना तो स्वीकार कर लिया किन्तु उनके मन को सांसारिक विषयवासनायें अपनी ओर खींच न सकीं।

बहिन - तो क्या शादी नहीं हुई ?
भाई - शादी तो हुई पर दूसरे ही दिन जम्बूकुमार घर-बार, कुटुम्बपरिवार, धन-धान्य और देवांगना-तुल्य चारों स्त्रियों को त्याग कर नग्न दिगम्बर साधु हो गये।

बहिन - उनकी पत्नियों के नाम क्या थे? क्या उन्होंने उन्हें दीक्षा लेने से रोका नहीं ?
भाई - उनके नाम पद्मश्री, कनकश्री, विनयश्री और रूपश्री थे। उन्होंने अपने हाव-भाव, रूप-लावण्य, सेवा-भाव और बुद्धि-चतुराई से पूरा-पूरा प्रयत्न किया, पर आत्मानन्द में मग्न रहने के अभिलाषी जम्बूकुमार के मन को वे विचलित न कर सकीं।

बहिन - ठीक ही है! रागियों का राग ज्ञानियों को क्या प्रभावित करेगा ? ज्ञान और वैराग्य की किरणें तो अज्ञान और राग को नाश करने में समर्थ होती हैं।
भाई - ठीक कहती हो बहिन! उनके ज्ञान और वैराग्य का प्रभाव तो उस विद्युच्चर नामक चोर पर भी पड़ा, जो उसी रात जम्बूकुमार के मकान में चोरी करने आया था। लेकिन जम्बूकुमार तथा उनकी नव–परिणीता स्त्रियों की चर्चा को सुनकर तथा उन कुमार की वैराग्य परिणति देख उनके साथ ही मुनि हो गया।

बहिन - और उन कन्याओं का क्या हुआ ?
भाई - उन्होंने भी अपनी दृष्टि को विषय-कषाय से हटाकर वैराग्य की तरफ मोड़ा और वे भी दीक्षा लेकर अर्जिकायें हो गई। जम्बूस्वामी के मातापिता ने भी अर्जिका और मुनिव्रत अंगीकार किया। इस प्रकार सारा ही वातावरण वैराग्यमय हो गया। जम्बूकुमार मुनि निरंतर आत्म-साधना में मग्न रहने लगे और माघ सुदी सप्तमी के दिन-जिस दिन उनके गुरु सुधर्माचार्य को निर्वाण लाभ हुआ-जम्बूस्वामी को केवलज्ञान को प्राप्ति हुई थी।

बहिन - जिस प्रकार महावीर का निर्वाण दिवस और गौतम का केवलज्ञान-दिवस एक है, उसी प्रकार सुधर्माचार्य का निर्वाण दिवस और जम्बूस्वामी को केवलज्ञान-दिवस एक ही हुआ।
भाई - हाँ! उसके बाद जम्बूस्वामी की दिव्यध्वनि द्वारा 18 वर्ष तक मगध से लेकर मथुरा तक के प्रदेशों में तत्त्वोपदेश होता रहा और अन्त में वे चौरासी (मथुरा) से मोक्ष पधारे।

प्रश्न -

  1. जम्बूस्वामी का संक्षिप्त परिचय अपनी भाषा में दीजिये।
  2. महाकवि पं. राजमलजी पाण्डे के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिये।

** पं. राजमलजी इन्हें विपुलाचल से मोक्ष जाना मानते हैं।*