वीतराग-विज्ञान पाठमाला भाग-१ | Vitrag Vigyan Pathmala Part -1

पाठ 6 : रक्षाबंधन

अध्यापक - सर्व छात्रों को सूचित किया जाता है कि कल रक्षाबंधन महापर्व है। इस दिन अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनियों का उपसर्ग दूर हुमा था। अत: यह दिन हमारी खुशी का दिन है। इसके उपलक्ष में कल शाला का अवकाश रहेगा।
छात्र - गुरुदेव! अकंपनाचार्य कौन थे, उन पर कैसा उपसर्ग आया था, वह कैसे दूर हुआ ? कृपया संक्षेप में समझाइये।

अध्यापक - सुनो!
अकंपनाचार्य एक दिगम्बर संत थे, उनके साथ सात सौ मुनियों का संघ था और वे उसके प्राचार्य थे। एक बार वे संघ सहित विहार करते हुए उज्जैन पहुंचे। उस समय उज्जैनी के राजा श्रीवर्मा थे। उनके यहां चार मंत्री थे - जिनके नाम थे - बलि, नमुचि, बृहस्पति और प्रह्लाद।
जब राजा ने मुनियों के आगमन का समाचार सुना तो वह सदल-बल उनके दर्शनों को पहुंचा। चारों मंत्री भी साथ थे। सभी मुनिराज आत्मध्यान में मग्न थे। अतः प्रवचन-चर्चा का कोई प्रसंग न बना।
मंत्रिगण मुनियों के आस्थावान न थे, अतः उन्होंने राजा को भड़काना चाहा और कहा " मौनं मूर्खस्य भूषणम्”- मौन मूर्खता छिपाने का अच्छा उपाय है, यही सोचकर साधु लोग चुप रहे हैं।
श्रुतसागर मुनिराज आहार करके आ रहे थे। उन्हें देख एक मंत्री बोला - एक बैल ( मूर्ख) वह आरहा है और वे मंत्री मुनिराज से वाद-विवाद के लिए उलझ पड़े। फिर क्या था, मुनिराज ने अपनी प्रबल युक्तियों द्वारा शीघ्र ही उनका मद खंडित कर दिया।
राजा के सामने उन चारों का अभिमान चूर्ण हो गया। उस समय तो वे लोग चुपचाप चले गए पर रात्रि में चारों ही ने वहाँ आकर मुनिराज पर प्रहार करने को एक साथ तलवार उठाई, किन्तु उनके हाथ कीलित होकर उठे ही रह गये। प्रात: यह समाचार जब राजा और जनता ने सुना तो सब वहाँ आगये। मुनिराज की सब ने स्तुति की और राजा ने चारों मंत्रीयों को देशनिकाला दे दिया।

छात्र - वे मुनिराज रात को वहाँ कैसे रहे ? उन्हें तो जहाँ संघ ठहरा था, वहीं ध्यानस्थ रहना चाहिये था।
अध्यापक - जब उन्होंने उक्त विवाद की चर्चा आचार्यश्री से की तो उन्होंने कहा कि तुम्हें उनसे चर्चा ही नहीं करनी चाहिये थी। क्योंकि जिस प्रकार साँप को दूध पिलाने से विष ही बनता है, उसी प्रकार तीव्र कषायी अज्ञानी जीवों से की गई तत्त्वचर्चा उनके क्रोध को ही बढ़ाती है। हो सकता है कि वे कषाय की तीव्रता में कोई उपसर्ग करें। अतः तुम उसी स्थान पर जाकर आज रात को ध्यानस्थ रहो।

छात्र - फिर…?
अध्यापक - वे चारों मंत्री हस्तिनागपुर के राजा पद्मराय के यहाँ जाकर कार्य करने लगे। किसी बात पर प्रसन्न होकर पदमराय ने उन्हें मँह माँगा वरदान माँगने को कहा। उन्होंने उसे यथासमय लेने की अनुमति लेली। एक बार वे ही अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनिराज विहार करते हुए हस्तिनागपुर पहुंचे। उन्हें आया देख बलि ने राजा पद्मराय से सात दिन के लिए राज्य माँग लिया। राज्य पाकर वह मुनिराजों पर घोर उपसर्ग करने लगा। तब राजा पद्मराय के भाई जो पहिले मुनि हो गये थे, उन मुनिराज विष्णकुमार ने उनकी रक्षा की।

छात्र - ऐसे दुष्ट शक्तिशाली राजा से निःशस्त्र मुनिराज ने कैसे रक्षा की ?
अध्यापक - मुनिराज को विक्रिया ऋद्धि प्राप्त थी।

छात्र - विक्रिया ऋद्धि क्या होती है ?
अध्यापक - विक्रिया ऋद्धि उसे कहते हैं जिसके बल से अपने शरीर को चाहे जितना बड़ा या छोटा बना लें।
मुनिराज ने अपना पद त्यागकर बावनिया’ का भेष बनाया और बलि के दरबार में पहुँचे। बलि ने उनसे इच्छानुसार वस्तु माँगने की प्रार्थना की। उन्होंने अपने कदमों से तीन कदम भूमि माँगी। जब बलि ने तीन कदम भूमि देना स्वीकार कर लिया तो उन्होंने अपने शरीर को बढ़ा लिया और समस्त भूमि को दो पगों मैं ही नाप लिया। इस तरह बलि को परास्त कर मुनिराजों की रक्षा की। वह दिन श्रावण की पूर्णिमा का था। अतः उसी दिन से रक्षाबंधन पर्व चल पड़ा। मुनिराजों की रक्षा हुई और बलि का बंधन हुआ।

छात्र - क्या मुनि की भूमिका में भी यह सब हो सकता है ?
अध्यापक - नहीं भाई! तुमने ध्यान से नहीं सुना। हमने कहा था न कि उन्होंने मुनिपद छोड़कर बावनिया का भेष बनाया। यह कार्य उनके पद के योग्य न था, तभी तो उनको प्रायश्चित्त लेना पड़ा, दुबारा दीक्षा लेनी पड़ी।

छात्र - धन्य है उन मुनि विष्णुकुमार को।
अध्यापक - वास्तव में धन्य तो वे अकंपनाचार्य आदि मुनिराज हैं, जिन्हें इतनी विपत्तियाँ भी आत्मध्यान से न डिगा सकीं।

छात्र - हाँ! और वे श्रुतसागर मुनि, जिन्होंने बलि आदि से विवाद कर उनका मद खंडित किया।
अध्यापक - उनकी विद्वत्ता तो प्रशंसनीय है पर दुष्टों से उलझना नहीं चाहिये था। आत्मा की साधना करने वाले को दुष्टों से उलझना ठीक नहीं।

छात्र - क्यों ?
अध्यापक - देखो न, उसी के परिणामस्वरूप तो इतना झगड़ा हुआ। अतः प्रत्येक आत्मार्थी को चाहिये कि वह जगत् के प्रपंचों से दूर रहकर तत्त्वाभ्यास में प्रयत्नशील रहे। यही संसार-बंधन से रक्षा का सच्चा उपाय है।

प्रश्न -

  1. रक्षाबंधन कथा अपने शब्दों में लिखिये।
  2. मुनि विष्णुकुमार को उपसर्ग निवारणार्थ मुनिपद क्यों छोड़ना पड़ा ?
  3. श्रुतसागर मुनिराज को अकंपनाचार्य ने वाद-विवाद के स्थान पर जाकर रात्रि में ध्यानस्थ होने का आदेश क्यों दिया ?
  4. उक्त कथा पढ़ कर जो भाव पैदा होते हैं, उन्हें व्यक्त कीजिये।
  • जिसका शरीर बहुत छोटा बावन अंगुल का होता हैं, उसको बावनिया कहते हैं।