जगत स्वातंत्र्य | Jagat Swatantrya

जगत स्वातंत्र्य

(छन्द- हरिगीतिका)

नमत तन मन वचन मम
तव चरण में सब सिद्ध जिन।
उतपाद सुध पर्याय का
व्यय भईं सब पर्यय मलिन।।1।।

इस जगत की सब रीति-
नीति ज्ञान में है झलकती।
नित निरंतर निज आत्म से
सुख की घटा है उछलती।।2।।

सब वस्तुएँ स्वाधीन और
स्वतंत्र होतीं परिणमित।
बस भूलकर इस सूक्ति को
गुमशुदा-से होते भ्रमित।।3।।

सारा जगत तो चला करता
जगत के अनुसार ही।
पर भ्रमित कुत्ते की तरह
ढोते रहे हम भार ही।।4।।

वह श्वान सोचे बैल-गाड़ी
चलत मम आधार से।
ढह गया सब कर्तृत्व जब
चल दी वो रीते मार्ग से।।5।।

यह श्वान पन कर्तृत्व पन
दुख की गहन वटजड़ कही।
मिथ्यात्व अनल पसार के
जल रूप में घृत है यही।।6।।

प्रत्येक रोटी एक जैसी
क्यों नही बनती भला?
नहिं चमकता हर वस्त्र
कैसे कहें धोबी की कला?।।7।।

सोचो! परीक्षा के समय
तैयारियां कितनी करी।
क्यों उससमय नहीं याद आता
अमुक रानी कब मरी?।।8।।

कहँ राज भोग विलासता
रे! अयोध्या का राज धर।
कहँ कीट कंटक मध्य वन
घूमत फिरें पग भूमि पर।।9।।

जब काल होय विनाश का
नहिं काम आवे तब मती।
असहाय रह गए राम जब
वन को चली सीता सती।।10।।

मम पुत्र आज्ञाकारि है
फूलो नहीं इस बात पर।
भूलो नहीँ कि नहिं चली
चक्री भरत की भ्रात पर।।11।।

मारीचि को खुद आदिनाथ
विरोध से न बचा सके।
थे जानते स्वाधीन है सब
इसलिए सुख पा सके।।12।।

त्रण सौ तिरेसठ मत चलाये
शत्रु की पर्याय में।
वे रोक नहिं पाए स्वयं
महावीर की पर्याय में।।13।।

नहिं रोक सकते थे कुमग
वे बात ऐसी थी नहीं।
वे ज्ञात थे इस बात से
होना है जो होगा वही।।14।।

अपराध कोई करे, कोई
भरे-सब को दीखता।
पूरव करम ना देख
बर्बट गला फाड़े चीखता।।15।।

जड़ कर्म की इस अदालत
में सर्व उत्तम न्याय है।
नहिं ज्ञान है इन कर्म में
इसलिए नहिं अन्याय है।।16।।

हम भला करना चाहते
पर बुरा हो जाता कभी।
हम बुरा करना चाहते
पर भला हो जाता तभी।।17।।

यह जगत की स्वाधीनता
क्यों नहीं दिखती है हमें?
खुश होत हैं हम राग में
रोते कभी हम विरह में।।18।।

अणु-अणु स्वयं स्वाधीन
विचरे बात ये सब जानते।
पर जानकर अनजान-से
इस सत्य को नहिं मानते।।19।।

हम गुमशुदा की खोज में
गुम-खुदा को नहिं ढूंढते।
सुख प्राप्त हो जाता अभी
तक स्वयं में यदि ढूंढते।।20।।

सुख शान्ति की प्राप्ति करें
सब जान वस्तु स्वरूप को।
“समकित” प्रकट कर सभी
जन पावें सुसिद्ध स्वरूप को।।21।।

:writing_hand: मंगलार्थी समकित जैन

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