निगोद में दुख है या अचेतनता?

अभय कुमार जी के स्वाध्याय से :
अगर तुम्हारी आखों पर काली पट्टी बांधकर तुम्हे कहि ले जाये, स्कूटर पर बैठाकर ले जाये, तो थोड़ी ही देर में तुम्हे कितनी बेचैनी होने लगेगी, जब एक इन्द्रिय पर आवरण पड़ने से इतनी बेचैनी हुई तो सोचो निगोद में कितनी बेचैनी होगी |

सुदृष्टितरंगनी से :
किसी के हाथ पैर बांधकर, उसे रस्सी से उल्टा लटकादें और फिर उसे डंडे से मारे (like third degree torture), तो ऐसा दुःख तो नरक में है और यदि किसी के हाथ पैर बांधकर, सुई धागे से उसकी दोनों आँखें सिल दे, उसके दोनों होठ सिलदे, उसके दोनों कान सिलदे, उसकी नाक सिलदे और उसे एक बोरी में इतना कस कर बांधदे की वो हिल डुल न पाए, फिर उसे डंडे से मारे, तो ऐसा दुःख निगोद में है |

As per my understanding :
यदि कोई कहे की मन के बिना दुःख संभव नहीं, तो बहुत से पंछी मुर्गी आदि मन से रहित असंज्ञी है पर वे प्रत्यक्ष ही दुखी देखे जाते है, सो यह सिद्ध होता है की मन के बिना भी जीव बहुत दुःख अनुभव कर सकता है |

यदि कोई कहे कि मन और इन्द्रियों के अभाव में इच्छाओ का भी अभाव हो जायेगा, सो चींटी के मन तो नहीं है पर गुण खाने की इच्छा है, मक्खी को मिठाई पर बैठने की, छोटी मछली को निरंतर भोजन ढूंढ़ने कि, सो मन के आभाव में भी इन जीवो को छुदा कि अत्यंत वेदना है, सो यह सिद्ध होता है कि मन के अभाव होने पर भी छुदा तृषा राग द्वेष आदि 18 दोषो का अभाव नहीं होता ।

यदि कोई कहे कि अल्प ज्ञान तो बहुत दुःख अनुभव नहीं कर सकता, सो स्वप्न में तो ज्ञान थोड़ा है, परन्तु यदि स्वप्न में भूत देखा हो तो स्वप्न में थोड़ी भय कसाय उत्तपन्न होती है या बहुत होती है, आप तो स्वप्न से जागने पर भी डर के कारन थोड़ी देर अपनी जगह से हिलता डुलता भी नहीं, सो यह सिद्ध होता है कि थोड़े ज्ञान में भी तीव्र कसाय उत्तपन्न हो सकती है । अल्प ज्ञान भी तीव्र कसाय का वेदन कर सकता है ।

जैसे बड़े शीशे में भी हाथी झलक सकता है और शीशे के छोटे से टुकड़े में भी हाथी झलक सकता है, हाथी झलकने के लिए शीशे के बड़े-छोटे होने से फरक नहीं पड़ता । ऐसे ही बहुत ज्ञान भी बड़े दुःख का वेदन कर सकता है और अल्प ज्ञान भी बड़े दुःख का वेदन कर सकता है, बहुत दुःख का वेदन करने के लिए बहुत ज्ञान चाहिए, ऐसा नहीं ।

[जैसे किसी मुनि के ज्ञान थोड़ा होने पर भी वे सुरेंद्र,नरेंद्र और असुरेन्द्र से भी अधिक सुख को अनुभवते है और सुरेंद्र,नरेंद्र,असुरेन्द्र बहुत ज्ञान होने पर भी मुनि जितना सुख नहीं अनुभवते ] [गर्भ में (शुरू के ३ माह में) शिशु के इन्द्रियों का विकास तो नहीं हुआ परन्तु माता खाबे चरपरो, सो एसिड बूँद बूँद करके गिरता है सो थोड़े (निद्रा जितने) ज्ञान में भी जलन अनुभव करता है ]

जो जैसा अनुभवता है, वो वैसा ही परिणमता है (from समयसार) । सो यदि अक्षर के अनंतवे भाग जितना ज्ञान भी आकुलता का अनुभव करे, तो पूरा आत्मा ही आकुलता रूप परिणमता है । क्योंकि ज्ञान का अंश भी पूर्ण आत्मा है ।

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