क्या स्याद्वाद और नयवाद में समानता और अंतर दोनों स्थापित किए जा सकते है?
अनेकान्तवाद और स्याद्वाद में भी कुछ अंतर है क्या?
यह सब समानार्थी शब्द है।
Credit- सचिनजी मंगलायतन
अनेकान्तवाद के दो अर्थ हैं,1.स्याद्वाद (यहाँ वाद शब्द का अर्थ कथन लिया है)
2.अनेकान्त (दरबारी लाल जी ने अपनी पुस्तक में किया है)
यह सर्वथा समान है या कथंचित समान?
अनेकांत यह वस्तु का स्वरुप है।स्याद्वाद यह अनेकांत को समजाने की कथन पद्धति है।
जैसे मोक्ष है और मोक्षपर जाने का मार्ग है।
अनेकान्त और स्यादवाद का यह अंतर ख्याल में है।
स्यादवाद और नयवाद का वचनात्मक होने संबंधी तथा वो दोनो ही अनेकान्त को प्रकाशित करने वाले हैं, यह भी ख्याल में है।
लेकिन यहां मेरा मुख्य प्रश्न यह है कि नयवाद और स्यादवाद में कुछ असमानता भी है क्या? क्यूंकि वाचक के भेद से वाच्य का भेद भी होता ही है और इनका प्रयोग पर्यायवाची के रूप में भी नहीं देखा जाता है।
स्याद्वाद व्यापक है,क्योकि इसमें प्रमाण ,नय ,निक्षेप ,इत्यादि की कथन पध्दति सम्मलित हैं।
और नय व्याप्य है क्योकि इसमें नय का ही कथन है।
Please check this pdf. In this, there are seperate chapter for anekantwad and syadvada.
धन्यवाद
आपने सही कहा, इस प्रकार जैनागम के अंतर्गत सभी विभिन्न वचन सिद्धांत (प्रमाण वाक्य ,नय वाक्य ,निक्षेप वाक्य, सप्त भंगी आदि) स्यादवाद में अंतर्गर्भित है।
@aman_jain इनके भावगत सीमा का भी विचार करके बताइए।
व्याप्य-व्यापक की भावात्मक अपेक्षा से, विषय की अपेक्षा से… क्या-क्या अंतर बनता है?
प्रकरण में कुछ प्रश्न और जोड़ना चाहता हूँ|
१. अनेकांत और अनेकांतवाद एक ही हैं अथवा इनमे भेद है?
२. अनेकांतवाद और स्यादवाद एक ही हैं अथवा भिन्न?
३. स्यात् और स्यादवाद एक ही हैं अथवा भिन्न?
४. कथंचित और स्यात् एक ही अर्थ के द्योतक हैं अथवा भिन्न? क्या कथंचित बोलने/लिखने पर विवक्षा को स्पष्ट किया जाता है, अथवा कथंचित अन्य गुणों की अनिवार्य सम्भावना का सूचक अपेक्षा के आधार को स्पष्ट न करने वाला tool है?
@jinesh