चतुर्थ गुणस्थान में आत्मानुभव में minimum interval

चतुर्थ गुणस्थान कायम रखने के लिए minimum 15 days के बाद and maximum 6 months के अंदर आत्मानुभव होना जरूरी हैं।

क्या यह संभव हैं कि चतुर्थ गुणस्थानवर्ती को दो बार आत्मानुभव हो within 15 days if s/he goes into मिथ्यात्व गुणस्थान in between?

चतुर्थ गुणस्थान में आत्मानुभव की उपलब्धता नही। आत्मानुभव का जघन्य अनुभव सातिशय अप्रमत्त गुणस्थान से आरंभ होता है।
क्षयोपशम सम्यकदर्शन की उत्कृष्ट स्थिति 66 सागर होती है।
भावो में उतार चढ़ाव के अनुसार , दर्शन मोहनीय की 3 एवं चरित्र मोहनीय की 4 प्रकृतियों के क्षय, उपशम ओर क्षयोपशम के अनुसार सम्यकदर्शन की स्थिति बनती है।

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चतुर्थ गुणस्थान में राम, रावण आदि सम्यकद्रष्टि हुए हैं तथा सम्यक्त्व, आत्मानुभव पूर्वक होता हैं।

Am I wrong anywhere?

राम क्षायिक सम्यकदृष्टि थे पर उन्हें आत्मानुभव नही था। जब मुनि व्रत धारण करने के पश्चात शुक्ल ध्यान में आरूढ़ हुए तब आत्मानुभव हुआ।
आत्मानुभव सम्यक्त्व पूर्वक श्रमण को ही होता है। जो कि कषायों की अत्यंत मंदता में होता है जो कि चौथे गुणस्थान में संभव नही।
रावण क्षायिक सम्यकदृष्टि नही था। और ना उसको अभी क्षायिक सम्यकदर्शन हुआ है। क्योंकि सम्यकदृष्टि जीव पहले नरक से नीचे के नर्को में जन्म नही लेता। उदाहरण - राजा श्रेणिक .जबकि रावण नीचे के नरको में है।

सभी अनुयोगों के अनुसार सम्यक्त्व की परिभाषा अलग है। पर करणानुयोग के अनुसार अगर सम्यक्त्व है तो सभी अनुयोगों के अनुसार भी है। और करणानुयोग के अनुसार 7 सर्वघाती प्रकृतियों के क्षय, उपशम, एवं क्षयोपक्षम से सम्यक्त्व होता है।

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But as per करणानुयोग, it’s a rule - to maintain सम्यक्त्व the person must have आत्मानुभव:

  • within 6 months in 4th गुणस्थान.
  • within 15 days in 5th गुणस्थान.
  • within 48 minutes in मुनि अवस्था.

I’ll add some reference soon. Do provide your opinions too.

Agreed :+1:

With in 6 month कषायों की मंदता।
अगर 6 महीने से अधिक किसी से बैर या कषाय की स्थिति रहती है तो वो अनंतानुबंधी की श्रेणी में आती है। अगर अनंतानुबंधी कषाय जीव को हे तो नियम से मिथ्यादृष्टि है, क्योंकि सम्यक दर्शन के लिए 7 प्रकृतियों का जो क्षयोपक्षम आदि बताया उसमे 4 अनंतानुबंधी कषाय है

इसी प्रकार अगर 15 दिन से अधिक ओर 6 महीने से कम कोई कषाय की स्थिति बनती है तो वो अप्रत्याखान कषाय के अंतर्गत आती है। यह कषाय जीव को एकदेश व्रत पालन नही करने देती। इसीलिए पंचम गुणस्थानवर्ती जीव के यह कषाय का अभाव होता है।

छटवे गुणस्थान में संज्वलन कषाय होती है। इस कषाय के सदभाव में महावृत तो हो सकते है पर यथाख्यात चरित्र नही प्राप्त हो सकता।

इस प्रकार कषायों की स्तिथि के माध्यम से सम्यक्त्व का अनुमान लगाया जा सकता है।

एक बार इसका अध्ययन कर लें। हो सकता है आपकी शंका का समाधान हो जाये।

https://drive.google.com/file/d/14ar_z_uP_EJHiLOYPuu7qxyQGvyRs6AG/view?usp=drivesdk

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Great @anubhav_jain. Just had a quick glance. That’s a really good comprehensive content on the topic. Thanks for sharing.

Can you share the full content. It is not getting clear what he actually meant. Definition of sambhalta from karnanuyog view is not shared.

विचारनीय है कि वीतराग सम्यकदर्शन के बिना आत्मानुभूति किस प्रकार संभव है?
और गृहस्थी में वीतराग सम्यकदर्शन का आधार क्या है?

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Sambhalta ???
हाँ विचारणीय तो है , तभी लिखा इतना सारा।
आधार आत्मा ही है।

*samyaktva. {Auto correct}

एक बार शोध पत्र का गहराई से अध्ययन कीजिये :pray::pray:…उम्मीद है करणानुयोग के आधार से भी स्पष्ट हो जाएगा।

शोध पत्र का लिंक हो तो भेजिए

Ek baar or :point_down:

https://drive.google.com/file/d/14ar_z_uP_EJHiLOYPuu7qxyQGvyRs6AG/view?usp=drivesdk
.

@anubhav_jain - somewhere you said - व्यवहार चारित्र आठवें गुणस्थान से प्रारंभ होता है। अपेक्षा स्पष्ट कीजिए। छठे गुणस्थान से प्रारंभ होना चाहिए।

A small spell correction - pg-8, last line. कषायों instead of कषयों

श्रेणी आठवें गुणस्थान से प्रारंभ होती है तो उस अपेक्षा यह कथन किया जाता है । क्योंकि शुद्धोपयोग की विशेष स्थिरता वहाँ होती है।

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In your question there are 2 situations as far as I can see -

Firstly, from 15 days to 180 days how many times can aatmanubhuti happen? (My Addition)
Ans. For, mithyadrishti none, samyagdrishti-avirati shravak one to sankhyat, vrati-samyagdrishti shravak more than one to sankhyaat, vrati-samyagdrishti sant sankhyat to ansankhyat, arihant-siddh everytime.

Secondly, with in 15 days how many times aatmanubhuti can happen? (Probably! What you asked!)
Ans. According to his frequency of loosing samyagdarshan, more than one to sankhyat.

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This sankhyat cannot be more than 12. Am I correct?

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सर्वघाति प्रकृति ६ ही होगी, सम्यक प्रकृति देश घाति है।