जिन रूप मंगलमय अहो | Jin Roop Mangalmay Aho

जिन रुप मंगल मय अहो, निज रुप मंगल मय… ।।टेक।।

महाभाग्य से पाया मैं, जिन रुप मंगल मय…!
जिसे देखते सहज दिखे, निज रूप मंगल मय…!

जिन रुप मंगल मय अहो, जिन रुप मंगल मय…!

ऐसा सुदंर रुप न दूजा, प्रभू सम प्रभू सोहे…!
बिन श्रृंगार न वस्त्र आभूषण, सबका मन मोहे…!
शाश्वत सुख का मार्ग दिखाबे, भाव हो भक्तिमय…!

जिन रुप मंगल मय अहो, जिन रुप मंगल मय…!

अखिल विश्व मे अहो अलौकिक, निरावरण निरदोश…!
दर्श ज्ञान सुख बल अनन्त लख, उपजे उर संतोष…!
अंतरमुख हो सहज परिणती, होती ज्ञान मय…!

जिन रुप मंगल मय अहो, जिन रुप मंगल मय…!

आत्मगयान क होय उजाला,मिथ्या तम नाशे…!
अविनाशी अक्षय प्रभुतामय,शाश्वत प्रभु भासे…!
तृप्त स्वयं मे हो निशंक निर्भय…!

जिन रुप मंगल मय अरे,जिन रुप मंगल मय…!

धन्य हुआ कृतकृत्य हुआ प्रभु, अदभुत भाव जगा…!
कर्मबन्धन का कारण सब, वैभाविक भाव जगा…!
सहज शीश चरणों मे नत है, भाव है आनंद मय…!

जिन रुप मंगल मय अरे, जिन रुप मंगल मय…!