जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


17. संयुक्त परिवार के लाभ :arrow_up:

1. बड़ों के अनुशासन में प्रमाद नहीं हो पाता । दिनचर्या व्यवस्थित बनी रहती है।

2. शील एवं मर्यादाओं की सुरक्षा रहती है। पहले तो बन्धन-सा लगता है, परन्तु बाद में समझ आने पर, सहज सुरक्षा कवच जैसा लगने लगता है।

3. अनेक प्रंसगों पर सुशिक्षा एवं संस्कार मिलते हैं, जो भविष्य में हमारी समस्याओं के समाधान में सहायक होते हैं।

4. लज्जा एवं संकोच से दुष्प्रवृत्तियाँ या दुर्व्यसनों से सहज ही बचे रहते हैं।

5. बड़ों की विनय, सेवा आदि के संस्कार रहने से अभिमान आदि नहीं आ पाते।

6. माता-पिता, भाई-भावजादि के बीच में सन्तान का पालन पोषण भलीप्रकार से हो जाता है। स्वयं के अनुभव न होने के कारण, होने वाले टेंशन से मुक्त रहते हैं।

7. पारिवारिक संगठन होने से समाज में प्रतिष्ठा रहती है।

8. सामाजिक व्यवहार निभाने में सुविधा रहती है।

9. आपत्ति के समय असहायपना नहीं लगता।

10. व्यवहार से देखें तो सुख बँटता रहने से बढ़ता है और दु:ख घटता रहता है।

11. धर्म साधन एवं समाधि में सरलता होती है।

12. परन्तु ये सब तभी सम्भव है, जब हृदय में विवेक और उदारता हो। वाणी में मधुरता हो । सहनशीलता हो। आक्षेप कटाक्षादि न हों। सहयोग की वात्सल्यपूर्ण भावना हो। समस्या का समाधान शान्तिपूर्वक निकाला जाये। त्याग और समर्पण के भाव रहें । पक्षपात और मिथ्या स्वार्थ न हों।

2 Likes