जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


16. पारिवारिक सौन्दर्य :arrow_up:

1. ‘मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान में एक। पाले पोषे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।।’ प्रमुख को परिवार के सभी सदस्यों की एक परिचय तालिका बना लेना चाहिए, जिसमें सभी सदस्यों के नाम, आयु, योग्यता, अभिरुचि, क्षमता, प्रकृति आदि की सूक्ष्म जानकारी रहना चाहिए।

2. आय की स्पष्ट जानकारी सभी सदस्यों को रहना चाहिए, जिससे किसी को अनावश्यक अपेक्षा न हो पाये।

3. यथासम्भव सभी के साथ समानता का व्यवहार किया जाये।

4. गृह एवं अन्य निर्माण भी दूरदर्शिता पूर्वक इसप्रकार किए जायें, जिससे बँटवारा उचित रीति से हो सके। विवादों का प्रसंग न बने।

5. बड़ों का आदर एवं छोटों से स्नेह का ध्यान रखा जाये।

6. अनुचित माँगों का निषेध दृढ़ता से हो, परन्तु उचित अपेक्षाओं की उपेक्षा न हो।

7. कार्य विभाजन विवेक पूर्वक हो, उसका पालन सावधानी पूर्वक हो । प्रत्येक सदस्य अपने से अधिक दूसरों का ध्यान रखें।

8. आर्थिक एवं वैचारिक उदारता वर्ते ।

9. परस्पर विश्वास रखें और विश्वासघात कदापि न करें।

10. किसी प्रकार की हानि होने या विपत्ति आने पर सहनशील रहें। व्यक्ति विशेष (आरोपी) को भोगने के लिए अकेला न छोड़ें। धैर्य एवं सहयोग दें। युक्ति पूर्वक समस्या का समाधान करें।

11. दोषों के लिए उचित अवसर देखकर कोमलता पूर्वक सन्तुलित भाषा में ही कहें । तिरस्कार करते हुए कदापि न कहें।

12. गुणों की प्रशंसा एवं प्रोत्साहन अवश्य करें।

13. छोटों से भी सभ्य एवं शुद्ध भाषा में विनय सहित बोलने की प्रवृत्ति विकसित करें।

14. किसी कार्य में छोटों की भी सलाह लेवें। अपने को ही सर्वोपरि न समझते रहें।

15. छोटे कार्यों को स्वयं करने की पहल करें, जिससे दूसरों को उस कार्य के करने में हीनता न लगे।

16. उन्नति एवं विश्राम आदि का सबको उचित अवसर दें।

17. तात्त्विक वातावरण बनायें। स्वाध्याय, प्रतिक्रमण, क्षमा, विनय, सेवा, पाठ, चिंतन की प्रयोगात्मक शिक्षा दें। त्याग का आदर्श दें।

1 Like