जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


10. सामान्य व्यवहार (सार्वजनिक व्यवहार) :arrow_up:

1. प्रातः ब्रह्मबेला में उठकर इष्ट देवादि का स्मरण एवं तत्त्व चिंतन करें। बच्चों को भी जल्दी उठाकर इष्ट देवादि का स्मरण, व्यायाम आदि के संस्कार दें।

2. घर, कमरे, कपड़े एवं अन्य सामग्री स्वच्छ एवं व्यवस्थित रखें। जूते, चप्पल आदि भी नियत स्थान पर रखें। घर में चाहे जहाँ न पहने रहें ।

3. जूते, चप्पल आदि तथा बाथरूम आदि में प्रयुक्त झाडू, वाईपर, मग, बाल्टी आदि का प्रयोग रसोई तथा भोजन करने के स्थान तक न करें।

4. चाहे कहीं न थूकें। घर का कूड़ा, कचरा नियत समय एवं नियत स्थान पर डालें जिससे गली के कूड़े के साथ चला जाए और दिनभर गली में गंदगी न रहे। सब्जी एवं फलों के छिलके अलग ऐसे स्थान पर रख दें, जिससे पशु खा लेवें। कचरा में न मिले और न सड़े। प्लास्टिक थैली में बंद करके कदापि न फेंकें। सर्वत्र स्वच्छता का ध्यान रखें।

5. वाहन रास्ते में अवरोध न हो, ऐसे खड़े करें । स्वयं भी बीच रास्ते में खड़े होकर बातें न करें।

6. बिलासिता की हिंसक सामग्री का बहिष्कार करें। (शैम्पू, चर्बीयुक्त साबुन, डिटर्जेन्ट, तरल नील, टूथपेस्ट, क्रीम, पाउडर, इत्र, नेल पॉलिश आदि) चमड़े, रेशम से बनी वस्तुओं का कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करें।

7. अश्लील पुस्तकें, कैसिट, चित्रादि घरों में न रखें।

8. यदि टी.वी. हटाना सुगम न हो तो शील विरुद्ध कार्यक्रमों (सीरियल तथा फिल्में) के देखने पर दृढ़ता से अंकुश रखें।

9. जल, विद्युत, गाड़ी, स्टेशनरी, कागजादी एवं अन्य उपकरणों का प्रयोग आवश्यकतानुसार न्यूनतम ही करें, दुरुपयोग न करें, जिससे आर्थिक बचत हेतु चोरी न करनी पड़े।

10. बिना मूल्य की वस्तु भी आवश्यकता न होने पर कदापि न लें।

11. बच्चों को संस्कारित करना आपका अनिवार्य कर्तव्य है।

12. बच्चों में मीठी सुपाड़ी, बबलगम, टॉफी, बिस्किट, फ्रूटी आदि शीतल पेय, ब्रेड, बाजारू चाट-पकौड़ी या मिठाईयों की आदत न डालें।

13. शील की मर्यादा का पालन कृत-कारित-अनुमोदना से करें।

14. देव दर्शन यथासंभव प्रातः एवं सायं दोनों बार करें। मंदिरजी के समीप की महिलाएं एवं निवृत्त वृद्धजन दोपहर के समय का सदुपयोग मंदिरजी में स्वाध्याय एवं व्यवस्था में सहयोग करते हुए करें।

15. स्वाध्याय, पूजा, भक्ति एवं अन्य आयोजनों में समय का विशेष ध्यान रखें। ‘प्रमाद से समय की अवहेलना, अक्षम्य अपराध है।’

16. घर में भी कम से कम एक बार सामूहिक पाठ एवं स्वाध्याय अवश्य करें।

17. परिवार के प्रत्येक सदस्य द्वारा दान-फण्ड अवश्य बनायें। मुख्यतः बालकों में दान के संस्कार अवश्य डालें।

18. तत्त्वज्ञान का अभ्यास आत्महित की दृष्टि से करें।

19. अपरिचित एकान्त स्थान में सामायिक या स्वाध्याय करने अकेले न बैठे।

20. लेटे-लेटे (प्रमादपूर्वक) जिनवाणी (ग्रन्थों आदि) का अध्ययन न करें।

21. बड़े पुरुषों के अति समीप, अति दूर एवं सिर की ओर न बैठे। मित्रों के समान हास्यादि न करें।

22. जिनवाणी, धार्मिक पुस्तकों आदि को पंखे की तरह प्रयुक्त न करें, जमीन पर न रखें; पैर, जूते, मोजे आदि अपवित्र वस्तुएँ छू जाने पर हाथ धोकर ही छुयें तथा छोटे (अबोध) बालकों को पढ़ने (फाड़ने या खोलने) के लिए न दें।

23. जिनवाणी (पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं, फोल्डरों, कैसिटों आदि) को पात्र तथा उपयुक्त व्यक्तियों को विनय पूर्वक रखने के अनुरोध पूर्वक उचित मूल्य (या बिना मूल्य) पर उपलब्ध करायें। चाहे किसी को भी मुफ्त बांटकर जिनवाणी की अविनय में भागी न बनें।

24. विवाह आदि का निमंत्रण पत्रिकाओं में णमोकार मंत्र, अन्य श्लोक एवं परमेष्ठी के चित्र आदि न छपायें । जिनमें यह छपे हों, ऐसे निमंत्रण पत्रिकादि प्राप्त होने पर उसकी अविनय न हो, अत: यथाशीघ्र विसर्जित करें या व्यवस्थित रखें।

25. शौच, बिस्तर, बाजारादि में छुए हुए तथा धोबी के यहाँ धुले एवं बच्चों को शौच कराने के बाद उन्हीं वस्त्रों का प्रयोग कम से कम मंदिर, स्वाध्याय, चौका (रसोई कार्य) आदि में न करें।

26. घर या दुकान आदि पर भी जिनवाणी तथा अन्य धार्मिक पत्रिकाओं को उचित एवं उच्च स्थान पर विनय पूर्वक विराजमान करें। यह विशेष रूप से ध्यान रखें कि उसके ऊपर जूते चप्पलादि न रखे जायें।

27. रसोई की स्वच्छता एवं शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।

28. (डबलरोटी, बिस्कुट, आइसक्रीम, पेय, मिठाईयाँ, नमकीन, मसाले, आटा आदि) बाजारू खाद्य-सामग्री घरों में न लाएँ तथा तीर्थों एवं धार्मिक आयोजनों में कदापि न खायें।

29. पानी छानने की प्रक्रिया विवेकपूर्ण हो, छन्ना साफ एवं योग्य हो, पिसी हरड़, सौंफ, इलायची, लोंग या गर्म करके पानी की मर्यादा का ध्यान रखें।

30. रात्रि भोजन, होटल का भोजन, खड़े-खड़े खाना-पीना, गिद्ध (बफर) भोज आदि का त्याग करें।

31. हिंसा के पाप से बचने एवं जैनत्व की रक्षा हेतु आलू, गाजर, मूली, अदरक आदि जमीकंद का त्याग करें।

32. एक ही थाली में दो या दो से अधिक व्यक्ति एक साथ भोजन न करें।

33. घरेलू आटा चक्की आदि मशीनों की ठीक तरह से साफ सफाई भी मर्यादित समयानुसार अवश्य करें।

34. मेहमानों को भोजन वयस्क कन्याएँ या बहुएँ न परोसें। भाई या वृद्ध महिलायें परोसें । युवा संसर्ग का बचाव रखें। लज्जा शील का आभूषण तो है ही, रक्षिका भी है।

35. कुसंग एवं विकथा से बचें।

36. वस्त्रों की सादगी की ओर विशेष ध्यान रखें, भड़कीले एवं मर्यादा विरुद्ध स्लीवलेस, मैक्सी, जीन्स, पारदर्शी तथा अति आधुनिक (एक्टरों जैसे फिल्मी स्टाइल के) वस्त्र न पहनें एवं बच्चों को भी न पहनायें।

37. बच्चों को बचपन से ही सादा वस्त्र पहनायें एवं इसका गौरव समझायें।

38. रात्रि-विवाह, मरण-भोज का बहिष्कार करें। सामूहिक (पंक्ति) भोज में भी जमीकंद आदि अभक्ष्य बनाने का त्याग करें।

39. शादी की वर्षगाँठ मनाने का नियम पूर्वक निषेध करें। बच्चों की वर्षगाँठ का यदि निषेध न हो सके तो पूजन, भक्ति, विधान, दान आदि क्रियाओं पूर्वक मनायें । पाश्चात्य शैली, उपहारों के लेन-देन अथवा विशेष साज-सज्जा, निमन्त्रणकार्ड, बड़े सामूहिक भोज पूर्वक न मनायें । केक कदापि न काटें।

40. स्वास्थ्य के नियमों का ध्यान रखें।

41. महिलायें मासिक अशुद्धि संबंधी नियमों का पालन पूर्ण रूप से करें।

42. गर्भपात जैसे क्रूरतापूर्ण कार्यों का त्याग करें।

43. महिलायें धार्मिक आयोजनों में सम्मिलित होने के लिए भी गोलियों (हार्मोन्स टेबलेट) का उपयोग कदापि न करें।

44. गाली आदि असभ्यतापूर्ण वचनों का प्रयोग नहीं करें।

45. जुआ, मद्य-मांस-मधु, कुशील आदि व्यसनों के उन्मूलन हेतु (व्यक्तिगत या सामूहिक) अभियान चलायें ।

46. ईर्ष्या, दम्भ, तुच्छ स्वार्थ, छल-प्रपंचपूर्ण निंद्य व्यवहार से दूर रहें।

47. लौकिक व्यवहार में प्रामाणिकता एवं नैतिकता का यथाशक्ति ध्यान रखें। किसी के प्रति अन्याय न करें। भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन न दें, अनुमोदना तो कदापि न करें।

48. हम जिन सार्वजनिक स्थलों का उपयोग करें, उसकी स्वच्छता का अपना नैतिक दायित्व अवश्य निभायें।

49. प्राण पीड़ित कर रिश्वत, फीस, वसूली आदि का त्याग करें।

50. अनैतिक रीति से कार्य साधने की अपेक्षा संतोषपूर्वक अभावों की चुनौती को जीवन में स्वीकारने का अभ्यास करें।

51. क्रूरतापूर्ण हिंसक घटनाओं (जैसे- आतंकवादी, साम्प्रदायिक दंगे, समाज एवं देश के लिए हानिकारक कार्यवाही या वैज्ञानिक-परमाणु विस्फोट आदि) की अनुमोदना भी न करें।

52. विदेशी (मल्टीनेशनल) बड़ी कम्पनियों द्वारा निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार कर, स्वदेशी कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित सामग्री के प्रयोग को बढ़ावा देकर, भारतीय अहिंसक संस्कृति के संरक्षण में सहयोग करें।

53. अशुद्ध एवं पर्यावरण प्रदूषण के कारण, जीवन घातक हो जाता है। पॉलीथिन, सजावट सामग्री जरी आदि तथा प्लास्टिक फाइवर से बनी वस्तुओं का दुष्प्रयोग एवं अधिक प्रयोग न करें तथा आवश्यक प्रयोग के बाद यत्र-तत्र न फेंके।

54. सहजतापूर्ण जीवन जीने की कला सीखें।

55. प्रतिकूलताओं का धैर्य एवं साहस से सामना करें, जिससे आत्महत्या जैसी जघन्य घटनाएँ न घटें।

56. परदेश (तीर्थादि में) जावें तो जिसप्रकार घर का ध्यान रखते हैं, उसीप्रकार मंदिर की आवश्यक सामग्री का ध्यान रखें।

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