जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


9. शिविर निर्देश :arrow_up:

आयोजकों से अपेक्षित -

1. शिविर में विचार/मनन हेतु भी समय दिया जाये।

2. शिविर के समापन से पूर्व समीक्षा हेतु कुछ समय रखा जाये। (कमियों, सुझावों, अपेक्षाओं तथा अच्छाईयों की चर्चा हो)

3. शिविर या अन्य धार्मिक आयोजनों में अति हिंसक उपकरणों, जैसे-कूलर आदि तथा अशुद्ध अभक्ष्य पदार्थों, जैसे-बाजार की बर्फ, डेरी का दूध, घी, दही, पनीर, मैदा, मावा, चर्बीयुक्त साबुन, तेलादि का प्रयोग न किया जाये।

4. शिविर आदि धार्मिक आयोजनों में प्लास्टिक बैग आदि का प्रयोग न किया जाये तथा अन्य प्रचार सामग्री का प्रयोग भी सीमित रूप से (जिनवाणी की विनय को ध्यान में रखते हुए) अति सावधानीपूर्वक ही हो।

5. बैग पर धार्मिक सिद्धान्त न छपाकर मात्र नैतिकता-प्रधान सूक्तियाँ ही लिखी जायें एवं ये बैग मात्र जिनवाणी के लिए ही प्रयोग किये जायें तथा ऐसे बनें जिससे लटकाये न जा सकें तथा जल्दी खराब न हो जायें।

6. धार्मिक आयोजन, अव्यापारिक, आडम्बर रहित तथा फिजूलखर्ची रहित, सादगीपूर्ण हमारी अहिंसक संस्कृति के पोषक तथा यत्नाचारपूर्वक, विनय, भक्ति, गरिमायुक्त एवं प्रभावना पूर्ण हों।

7. श्री जिनेन्द्रदेव की रथयात्रा आदि के प्रसंग में डिस्पोजल गिलास, केले, संतरे, आईस्क्रीम, कोल्डड्रिंक के स्थान पर मात्र छना हुआ जल वितरण किया जाये, जिससे समवशरण विहार में गन्दगी एवं आसादना न हो।

शिक्षक, विद्वानों से संबंधित -

समस्त धार्मिक आयोजनों के आधार स्तम्भ विद्वान् ही होते हैं, वे समाज में जिनशासन के प्रभावक/ मार्गदर्शक होते हैं। निश्चित ही समाज को उनसे जैन शासन की गंभीर मर्यादाओं के प्रवर्तन / स्थापना की अपेक्षा होती है।

8. प्रात: शीघ्र जागकर पंच-परमेष्ठी प्रभु का स्मरण करें।

9. बिस्तर पर सामायिक या अध्ययन नहीं करें।

10. कमरा, कपड़े एवं सभी सामग्री स्वच्छ एवं व्यवस्थित रखें।

11. शिविर के अन्तर्गत होने वाली पूजाओं में शिविरार्थी एवं शिक्षक-गण शुद्ध धोती दुपट्टा पहनकर ही सम्मिलित हों।

12. पूजा-भक्ति आदि में अश्लील, उत्तेजक संगीत धुनों का प्रयोग न हो।

13. अध्यापकों की वेशभूषा, रहन-सहन, खान-पान, सादगी एवं यत्नाचार पूर्वक हो। खड़े-खड़े खाना-पीना न हो। दिनभर कुछ भी न खाते रहें।

14. भोजनादि में पहले से निर्देश दें। सात्विक, अल्प भोजन भी शुद्धि एवं शांति पूर्वक करें।

15. शिविर के निर्धारित कार्यक्रम के समयचक्र का दृढ़ता एवं ईमानदारी से पालन किया जावे। पूजन, भक्ति, प्रवचन के समय पर नाश्ता, भोजन, शयन या विकथा न करें।

16. शिविर में भी यथास्थान उचित तरीके से बैठकर ही प्रवचन कक्षा आदि का लाभ लेवें । कुर्सी पर बैठकर, लेटे-लेटे या जूते-चप्पल पहनकर, विकथा करते हुए, जूठे मुख कभी न सुनें । प्रवचन की सी.डी. एवं कैसेट भी सावधानी पूर्वक बैठकर सुने।

17. शिविरादि धार्मिक आयोजनों में जिस प्रयोजन हेतु सम्मिलित हुये हों, उसके प्रतिकूल लौकिक कार्यों, विषय-कषाय आदि में समय नष्ट कर आसादना न करें।

18. धार्मिक आयोजनों में प्राप्त सुविधाओं का अन्य लौकिक प्रयोजन, जैसे-घूमने-फिरने, मार्केटिंग आदि में दुरुपयोग न कर, नैतिकता का पालन करें।

19. टी.वी. देखने से बचें एवं परिवार एवं रिश्तों की भी बराबर की बहिनों से भी एकांत में चर्चा से बचे। शील का पालन दृढ़ता से करें।

20. प्रवचन करते समय पैर का स्पर्श न करें। चटाई पर हाथ न रखें, हाथ उठाकर ताली बजाने या ताल ठोकने जैसी प्रवृत्ति से बचना योग्य है।

सामान्यतः पूजा का क्रम -

पूजन में क्रम का ध्यान रखा जावे। श्री देव-शास्त्र-गुरु, पंच-परमेष्ठी या समुच्चय पूजन, बीस तीर्थंकर, तीस चौबीसी, कृत्रिमाकृत्रिम चैत्यालय अर्घ्य, चैत्यभक्ति, कायोत्सर्ग, सिद्धपूजन का अर्घ्य, आदिनाथ भगवान, मूलनायक भगवान, बालयति तीर्थंकर, चौबीस तीर्थंकर का अर्घ्य एवं कल्याणक दिवस में संबंधित तीर्थंकर का अर्घ्य एवं साथ ही विशिष्ट पर्व में अर्घ्य / पूजाक्रम श्री पंचमेरू, नंदीश्वर, सोलहकारण, दशलक्षण व रत्नत्रय का अर्घ्य समर्पित करना चाहिये।

शिक्षण संबंधी निर्देश -

पाठ्य विषय सामग्री सांगोपांग एवं पूर्व निर्धारित हो, जिसमें प्रथमानुयोग की कहानियाँ एवं आध्यात्मिक पाठ भी सम्मिलित हों। 21. सदाचरण प्रेरणा में रात्रि भोजन त्याग, आलू आदि अभक्ष्य का त्याग तो रहे, साथ ही सच्चे देव-शास्त्र-गुरु, धर्म के प्रति भक्ति, श्रद्धा सर्वलौकिक एवं पारलौकिक प्रयोजन एवं आयोजनों में उनकी स्थापना करें। ऐसे संस्कारों पर बल दें जिससे आपत्तिकाल में भी कुदेवादि के प्रति या मंत्र-तंत्रों के प्रति झुकाव न होने पायें।

22. न्याय-नीति पूर्ण जीवन की विशेष प्रेरणा, जिससे किसी प्राणीमात्र के प्रति अन्याय से भयभीत रहें। इर्ष्या, तिरस्कार आदि का भाव न जन्में । मिथ्यात्व, कषायों, पापों एवं व्यसनों का सातिचार विवेचन करते हुए त्याग की प्रेरणा करें।

23. द्रव्य अहिंसा का सांगोपांग विश्लेषण, सत्यादि व्रतों, मैत्री आदि भावनाओं का स्वरूप स्पष्ट करें।

24. बिना श्रम के येन केन प्रकारेण अधिकाधिक धन प्राप्ति के कुसाधनों के प्रति मन आकर्षित न होने पाये, ऐसी प्रेरणा दें।

25. श्री जिनमंदिरजी में अनुशासन, वैयावृत्ति, यत्नाचार की विशेष प्रेरणा दें।

26. सद्विचार एवं सादा रहन-सहन रखें एवं सत्साहित्य पठन-पाठन की प्रेरणा करें।

27. वर्तमान कुसंग, साहित्य, टी.वी., मोबाइल, फोन, इंटरनेट वेबसाइट आदि के द्वारा विषय-कषायों के पोषण से बचने की प्रेरणा दें। आज्ञाकारिता, बड़े-बूढों की सेवा-वैयावृत्ति, सहानुभूति, विनय, सरलता, सहजता, क्षमा, दया आदि का प्रायोगिक स्वरूप भी समझाया जाये। भाषा एवं चेष्टाओं की शिष्टता (मर्यादा) पर विशेष बल देना चाहिये।

29. लड़कों एवं लड़कियों के सम्पर्क पर विशेष निगरानी रखी जाये। कक्षाओं में बड़ी लड़कियों को खड़ा न किया जाये। खेल भी लड़कों को लड़कियों से अलग खिलाएँ। लड़के व लड़कियाँ एक साथ न खेलें। अध्यापक साथ में न खेलें । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बड़ी लड़कियाँ स्टेज पर पुरूषों के सामने न आयें । महिला-सभा अलग हो।

30. कक्षा में उल्लास एवं प्रसन्नता तो ठीक है, परन्तु मर्यादा रहित हास्यादि न हो। हाथ ऊपर उठाकर ताली न बजवायें।

31. पुरस्कार विशेषत: धार्मिक उपयोग के रहें। जैसे-सत्साहित्य, जपमाला, आसन, चटाई, चौकी, स्टीकर्स, सूक्तियों की तख्ती / प्लेटें, पूजन का सेट, डिब्बी आदि।

32. बच्चों में पंक्तिभोज के संस्कार जागृत हों; अत: उन्हें बिठाकर ही शुद्ध भोजन, अल्पाहार (नाश्ता), पेयजल भी कराया जाये। बाजार की मिठाईयाँ-नमकीन, टॉफी, बिस्कुट, आइस्क्रीम, कोल्डड्रिंक्स कभी न खिलायें-पिलायें। ऊपर को मुँह करके एक ही बर्तन से सभी पानी डालते हुए न गटकें। गिलासों का प्रयोग करें।

33. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में पाश्चात्य संस्कृति (फिल्म, टी.वी., हास्य, धर्मविरुद्ध, कवि सम्मेलन) की नहीं वरन् जैनत्व की गरिमा झलकती हो।

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