बालबोध पाठमाला भाग २ | Balbodh Pathmala Part-2 [Hindi & English]

पाठ आठवाँ: जिनवाणी-स्तुति

(सवैया)
मिथ्यातम नाशवे को, ज्ञानके प्रकाशवे को।
आपा पर भासवे को, भानु सी बखानी है।।
छहों द्रव्यों जानवे को, बन्ध विधि भानवे को।
पिछानवे को, परम प्रमानी है।।
स्व-पर अनुभव बतायवे को, जीव के जतायवे को।
काहू न सतायवे को, भव्य उर आनी है ।।
जहाँ तहाँ तारवे को, पार के उतारवे को।
सुख विस्तारवे को, ये ही जिनवाणी है ।।

दोहाः-
हे जिनवाणी भारती, तोहि जपों दिन रैन।
जो तेरी शरणा गहे, सो पावे सुख चैन।॥
जा वाणी के ज्ञान तैं, सूझे लोकालोक।
सो वाणी मस्तक नवों, सदा देत हो ढोक।।

जिनवाणी-स्तुति का भावार्थ

हे जिनवाणीरूपी सरस्वती ! तुम मिथ्यात्वरूपी अंधकार का नाश करने के लिये तथा आत्मा और परपदार्थों का सही ज्ञान कराने के लिये सूर्य के समान हो।
छहों द्रव्यों का स्वरूप जानने में, कर्मो की बन्ध-पद्धति का ज्ञान कराने में, निज और पर की सच्ची पहिचान कराने में तुम्हारी प्रमाणिकता असंदिग्ध है।
अत: हे जिनवाणी! भव्य जीवों ने तुमको अपने हृदय में धारण कर रखा है, क्योंकि तुम आत्मानुभव करने का, आत्मा की प्रतीति करने का तथा किसी को दुःख न हो, ऐसा मार्ग बताने में समर्थ हो।
एकमात्र जिनवाणी ही संसार से पार उतारने में समर्थ है एवं सच्चे सुख को पाने का रास्ता बताने वाली है।
हे जिनवाणीरूपी सरस्वती ! मैं तेरी ही आराधना दिन-रात करता हूँ, क्योंकि जो व्यक्ति तेरी शरण में जाता है, वही सच्चा अतीन्द्रिय आनन्द पाता है।
जिस वीतराग-वाणी का ज्ञान हो जाने पर सारी दुनिया का सही ज्ञान हो जाता है, उस वाणी को मैं मस्तक नवाकर सदा नमस्कार करता हूँ।

प्रश्न -

१. जिनवाणी की स्तुति लिखिये।
२. स्तुति में जो भाव प्रकट किये हैं, उन्हें अपनी भाषा में लिखिये।
३. जिनवाणी किसे कहते हैं ?
४. जिनवाणी की आराधना से क्या लाभ है?

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