बालबोध पाठमाला भाग २ | Balbodh Pathmala Part-2 [Hindi & English]

पाठ छठवाँ: द्रव्य

छात्र - गुरुजी , अम्मा कहती थी कि जो हमें दिखाई देता है, वह तो सब पुद्गल है। यह पुद्गल क्या होता है ?
अध्यापक- ठीक तो है। हमें आंखों से तो सिर्फ वर्ण (रंग) ही दिखाई देता है। और वह मात्र पुद्गल में ही पाया जाता है। जिसमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण पाया जाय, उसे पुद्गल कहते हैं। यह अजीव द्रव्य हैं।

छात्र- द्रव्य किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के हैं ?
अध्यापक- गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं। वे छह प्रकार के हैं। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ।

छात्र - तो क्या द्रव्यों में अजीव नहीं है ?
अध्यापक- जीव को छोड़कर बाकी सब द्रव्य अजीव ही तो हैं। जिनमें ज्ञान पाया जाय वे ही जीव हैं। बाकी सब अजीव।

छात्र - जब द्रव्य छह प्रकार के हैं तो हमें दिखाई केवल पुद्गल ही क्यों देता है ?
अध्यापक- क्योंकि इन्द्रियाँ रूप, रस आदि को ही जानती हैं और आत्मा आदि वस्तुयें अरूपी हैं, अतः इन्द्रियाँ उनके ज्ञान में निमित्त नहीं हैं।

छात्र - पूजा पाठ को धर्म द्रव्य कहते होंगे और हिंसादिक को अधर्म द्रव्य!
अध्यापक- नहीं भाई! वे धर्म और अधर्म अलग बात है; ये धर्म और अधर्म तो द्रव्यों के नाम है जो कि सारे लोक में तिल में तेल के समान फैले हुए हैं।

छात्र - इनकी क्या परिभाषा है ?
अध्यापक- जिस प्रकार जल मछली के चलने में निमित्त हैं, उसी प्रकार स्वयं चलते हुए जीवों और पुद्गलों को चलने में जो निमित्त हो, वही धर्म द्रव्य है। तथा जैसे वृक्ष की छाया पथिकों को ठहरने में निमित्त होती है, उसी प्रकार गमनपूर्वक ठहरने वाले जीवों और पुद्गलों को ठहरने में जो निमित्त हो, वही अधर्म द्रव्य है ।

छात्र - जब धर्म द्रव्य चलायेगा और अधर्म द्रव्य ठहरायेगा तो जीवों को बड़ी परेशानी होगी?
अध्यापक- वे कोई चलाते ठहराते थोड़े ही हैं । जब जीव और पुद्गल स्वयं चलें या ठहरें तो मात्र निमित्त होते हैं ।

छात्र - आकाश तो नीला-नीला साफ दिखाई देता ही है , उसे क्या समझना ?
अध्यापक- नहीं! अभी तुम्हें बताया था कि नीलापन- पीलापन तो पुद्गल की पर्याय है। आकाश तो अरूपी है, उसमें कोई रंग नहीं होता । जो सब द्रव्यों के रहने में निमित्त हो, वही आकाश है।

छात्र - यह आकाश ऊपर है न ?
अध्यापक- यह तो सब जगह है, ऊपर-नीचे, अगल में, बगल में । दुनियाँ की ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ आकाश न हो। सब द्रव्य आकाश में ही हैं।

छात्र - काल तो समय को ही कहते हैं या कुछ और बात है?
अध्यापक- काल का दूसरा नाम समय भी है, किन्तु काल जीव, पुद्गल की तरह एक द्रव्य भी है। उसमें जो प्रति समय अवस्था होती है। उसका नाम समय है। यह काल द्रव्य जगत् के समस्त पदार्थों के परिणमन में निमित्त मात्र होता है।

छात्र - अच्छा तो ये द्रव्य हैं कुल कितने ?
अध्यापक- धर्म, अधर्म और आकाश तो एक एक ही हैं पर काल द्रव्य असंख्य हैं। तथा जीव द्रव्य तो अनन्त हैं एवं पुद्गल जीवों से भी अनन्त गुणे हैं। अर्थात् अनन्तानंत हैं।

छात्र - इन द्रव्यों के अलावा और कुछ नहीं है दुनियाँ में ?
अध्यापक- इनके अलावा कोई दुनियाँ ही नहीं है । छह द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं और विश्व को ही दुनियाँ कहते हैं।

छात्र - तो इस विश्व को बनाया किसने ?
अध्यापक- यह तो अनादि-अनंत स्वनिर्मित है; इसे बनाने वाला कोई नहीं।

छात्र - और भगवान कौन है?
अध्यापक- भगवान दुनियाँ को जानने वाला है, बनाने वाला नहीं। जो तीन लोक और तीन काल के समस्त पदार्थों को एक साथ जाने, वही भगवान है।

छात्र - आखिर दुनियाँ में जो कार्य होते हैं, उनका कर्त्ता कोई तो होगा ?
अध्यापक- प्रत्येक द्रव्य अपनी-अपनी पर्याय ( कार्य ) का कर्त्ता है । कोई किसी का कर्ता नहीं, ऐसी अनंत स्वतंत्रता द्रव्यों के स्वभाव में पड़ी हुई है। उसे जो पहिचान लेता है, वही आगे चलकर भगवान बनता है।

प्रश्न -

१. द्रव्य किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के होते हैं ? नाम गिनाइये।
२. विश्व किसे कहते हैं, इसे बनाने वाला कौन है ? भगवान क्या करते है ?
३. प्रत्येक द्रव्य की अलग-अलग संख्या लिखें ।
४. परिभाषा लिखिये:- धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य और काल द्रव्य।
५. इन्द्रियों की पकड़ में आने वाले द्रव्य को समझाइये ।
६. आत्मा का स्वभाव क्या है? वह इन्द्रियों से क्यों नहीं जाना जा सकता है ?
७. अजीव और अरूपी द्रव्यों को गिनाइये ।

पाठ में आये हुये सूत्रात्मक सिद्धान्त-वाक्य

१. द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं।
२. यह लोक ( विश्व ) अनादि - अनंत स्वनिर्मित हैं ।
३. गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं।
४. जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पाये जायँ, वही पुद्गल है।
५. जिसमें ज्ञान पाया जाय, वही जीव है।
६. धर्म द्रव्य - स्वयं चलते हुए जीवों और पुद्गलों की गति में निमित्त।
७. अधर्म द्रव्य - गमनपूर्वक ठहरने वाले जीवों और पुद्गलों के ठहरने में निमित्त।
८. आकाश द्रव्य: सब द्रव्यों के अवगाहन में निमित्त।
९. काल द्रव्य: सब द्रव्यों के परिवर्तन में निमित्त।
१०. सब द्रव्य अपनी-अपनी पर्यायों के कर्त्ता है, कोई भी पर का कर्त्ता नहीं है।
११. भगवान लोक को जानने वाला है, बनाने वाला नहीं।
१२. जीव को छोड़कर बाकी पाँच द्रव्य अजीव हैं।
१३. पुद्गल को छोड़कर बाकी पाँच द्रव्य अरूपी हैं।
१४. इन्द्रियाँ रूपी पुद्गल को जानने में ही निमित्त हो सकती है, आत्मा को जानने में नहीं।

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