बालबोध पाठमाला भाग २ | Balbodh Pathmala Part-2 [Hindi & English]

पाठ पाँचवाँ: गतियाँ

पुत्र - पिताजी! आज मन्दिर में सुना था कि चारों गति के माँहि प्रभु दु:ख पायो मैं घणो।" ये चारों गतियाँ क्या हैं, जिनमें दु:ख ही दुःख है ।
पिता - बेटा ! गति तो जीव की अवस्था - विशेष को कहते हैं। जीव संसार में मोटे तौर पर चार अवस्थाओं में पाये जाते हैं, उन्हें ही चार गतियाँ कहते हैं। जब यह जीव अपनी आत्मा को पहिचान कर उसकी साधना करता है तो चतुर्गति के दुःखों से छूट जाता है और अपना अविनाशी सिद्ध पद पा लेता है, उसे पंचम गति कहते हैं।

पुत्र - वे चार गतियाँ कौन-कौनसी है ?
पिता - मनुष्य, तिर्यंच, नरक और देव।

**पुत्र -**मनुष्य तो हम तुम भी हैं न ?
पिता - हम मनुष्यगति में हैं, अत: मनुष्य कहलाते हैं। वैसे हैं तो हम तुम भी आत्मा (जीव)।
मनुष्यगति जब कोई जीव कहीं से मरकर मनुष्यगति में जन्म लेता है अर्थात्म नुष्य-शरीर धारण करता है तो उसे मनुष्य कहते हैं।

पुत्र - अ्रच्छा तो हम मनुष्यगति के जीव हैं। गाय, भैंस, घोड़ा आदि किस गति में हैं ?
पिता - वे तिर्यञ्चगति के जीव हैं । पृथ्वी, वनस्पति, जल, ग्रग्नि, वायु, कीड़े-मकोड़े, मोर, हाथी, घोड़े, कबूतर, आदि पशु-पक्षी जो तुम्हें दिखाई देते हैं, वे सभी तिर्यञ्चगति में आते हैं।
तिर्यञ्चगति जब कोई जीव मरकर इनमें पैदा होता है तो वह तिर्यञ्च कहलाता है।

पुत्र - जब मनुष्यों को छोड़ कर दिखाई देने वाले सभी तिर्यञ्च हैं तो फिर नारकी कौन हैं ?
**पिता -**इस पृथ्वी के नीचे सात नरक हैं। वहाँ का वातावरण बहुत ही कष्टप्रद है। वहाँ पर कहीं शरीर को जला देने गर्मी और कहीं शरीर को गला देने वाली भयंकर सर्दी पड़ती है । भोजन, पानी का सर्वथा अभाव है। वहाँ जीवों को भयंकर भूख, प्यास की वेदना
सहनी पड़ती है। वे लोग तीव्र कषायी भी होते हैं, आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं, मारकाट मची रहती हैं। जो जीव मरकर ऐसे संयोगों में जन्म लेते हैं, उन्हें नारकी कहते हैं।

पुत्र - और देव … ?
पिता - जैसे जिन जीवों के भाव होते हैं उनके अनुसार उन्हें फल भी मिलता है। उनके उन्हे फल मिले ऐसे स्थान भी होते हैं। जैसे पाप का फल भोगने नरकादि गति है, उसी प्रकार जो जीव पुण्य भाव है उनका भोगने का स्थान देवगति का
स्थान करता फल देवगति है।
देवगति में मुख्यत: भोग-सामग्री प्राप्त रहती है। जो जीव मरकर देवों में जन्म लेते हैं, उन्हें देवगति के जीव कहते हैं।

पुत्र - अच्छी गति कौनसी है ?
पिता - जब बता दिया कि चारों गति में दुःख ही है तो फिर गति अच्छी कैसे होगी? ये चारों संसार हैं। इसे छोड़कर जो मुक्त हुए वे सिद्ध जीव पंचमगति वाले हैं । एकमात्र पूर्ण आनंदमय सिद्धगति ही हैं।

पुत्र - मनुष्यगति को अच्छी कहो न ? क्योंकि इससे ही मोक्षपद मिलता है।
पिता - यदि यह अच्छी होती तो सिद्ध जीव इसका भी परित्याग क्यों करते ? अतः चतुर्गति का परिभ्रमण छोड़ना ही अच्छा है।

पुत्र - जब इन गतियों का चक्कर छोड़ना ही अच्छा है तो फिर यह जीव इन गतियों में घूमता ही क्यों है ?
पिता - जब अपराध करेगा तो सजा भोगनी ही पड़ेगी।

पुत्र - किस अपराध के फल से कौनसी गति प्राप्त होती है ?
पिता - बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह रखने का भाव ही ऐसा अपराध है जिससे इस जीव को नरक जाना पड़ता है तथा भावों की कुटिलता अथार्त मायाचार, छल-कपट तिर्यञ्चायु बंध के कारण हैं।

पुत्र - मनुष्य तथा देव… .?
पिता - अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह रखने का भाव और स्वभाव की सरलता मनुष्यायु के बंध के कारण हैं। एसी प्रकार संयम के साथ रहने वाला शुभभावरूप रागांश और असंयमांश मंदकषायरूप भाव तथा अज्ञानपूर्वक किये गये तपश्चरण के भाव देवायु के बंध के कारण हैं।
पुत्र - उक्त भाव बंध के कारण होने से अपराध ही हैं तो फिर निरपराध दशा क्या है?
पिता - एक वीतराग भाव ही निरपराध दशा है, अ्रत: वह मोक्ष कारण है।

पुत्र - इन सबके जानने से क्या लाभ है?
पिता - हम यह जान जावेंगें कि चारों गतियों में दुःख ही हैं, सुख नहीं गौर चतुर्गति भ्रमण का कारण शुभाशुभ भाव है, इनसे छूटने का उपाय एक वीतराग भाव है। हमें वीतराग भाव प्राप्त करने के लिए ज्ञानस्वभावी आत्मा का आश्रय लेना चाहिये।

प्रश्न -

१. गति किसे कहते है ? वे कितने प्रकार की होती हैं ?
२. तिर्यंञ्चगति किसे कहते हैं ?
३. नरकगति के वातावरण का वर्णन कीजिये ऐसे कौन से कारण हैं।
जिनसे जीव नरकगति प्राप्त करता है ?
४. क्या देवगति में भी सुख नहीं है ? सकारण उत्तर दीजिये।
५. सबसे अच्छी गति कौनसी है ? युक्तिसंगत उत्तर दीजिये ।

पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त-वाक्य

१. जीव की अवस्था-विशेष को गति कहते हैं।
२. जीव कहीं से मरकर मनुष्य-शरीर धारण करता है, उसे मनुष्यगति कहते हैं।
३. जीव कहीं से मरकर तिर्यंच-शरीर धारण करता है, उसे तिर्यंचगति कहते हैं।
४. जीव कहीं से मरकर नारकी-शरीर धारण करता है, उसे नरकगति कहते हैं।
५. जीव कहीं से मरकर देव - शरीर धारण करता है, उसे देवगति कहते हैं।
६. जीव अपनी आत्मा को पहिचान कर उसकी साधना द्वारा चर्तुगति के दुःखों से छूटकर सिद्धपद पा लेता है, उसे पंचमगति कहते हैं।
७. एक वीतराग भाव ही पंच गति ( मोक्ष ) का कारण है। वीतराग भाव प्राप्त करने के लिये ज्ञानस्वभावी ग्रात्मा का आश्रय लेना चाहिये।

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