बालबोध पाठमाला भाग २ | Balbodh Pathmala Part-2 [Hindi & English]

पाठ तीसरा: कषाय

सुबोध - भाई तुम तो कहते थे कि आत्मा मात्र जानता-देखता है, पर क्या आत्मा क्रोध नहीं करता; छल-कपट नहीं करता?
प्रबोध- हाँ ! हाँ!! क्यों नहीं करता ? पर जैसा आत्मा का स्वभाव जानना-देखना है, वैसा आत्मा का स्वभाव क्रोध आदि करना नहीं । कषाय तो उसका विभाव है, स्वभाव नहीं।

सुबोध - यह विभाव क्या होता है ?
प्रबोध- आत्मा के स्वभाव के विपरीत भाव को विभाव कहते हैं। आत्मा का स्वभाव आनन्द है। मिथ्यात्व, राग-द्वेष ( कषाय) आनन्द स्वभाव से विपरीत हैं, इसलिए वे विभाव हैं।

सुबोध - राग-द्वेष क्या चीज़ है ?
प्रबोध- जब हम किसी को भला जानकर चाहने लगते हैं, तो वह राग कहलाता है और जब किसी को बुरा जानकर दूर करना चाहते हैं, तो द्वेष कहलाता है |

सुबोध - और कषाय ?
प्रबोध- दिन-रात तो कषाय करते हो और यह भी नहीं जानते कि वह क्या वस्तु है? कषाय राग-द्वेष का ही दूसरा नाम है। जो आत्मा को कसे अर्थात् दुःख दे, उसे ही कषाय कहते हैं। एक तरह से आत्मा में उत्पन्न होने वाला विकार राग-द्वेष ही कषाय है अथवा जिससे संसार की प्राप्ति हो वही कषाय है।

सुबोध - ये कषायें कितनी होती हैं ?
प्रबोध - कषायें चार प्रकार की होती हैं। क्रोध, मान, माया और लोभ।

सुबोध - अच्छा तो हम जो गुस्सा करते हैं, उसे ही क्रोध कहते होंगे ?
प्रबोध - हाँ, भाई! यह क्रोध बहुत बुरी चीज़ है ।

सुबोध - तो हमें यह क्रोध आता ही क्यों हैं ?
प्रबोध - मुख्यतया जब हम ऐसा मानते हैं कि इसने मेरा बुरा किया तो आत्मा में क्रोध पैदा होता हैं। इसी प्रकार जब हम यह मान लेते हैं कि दुनियाँ की वस्तुएँ मेरी हैं, मैं इनका स्वामी हूँ, तो मान हो जाता है।

सुबोध - यह मान क्या हैं ?
प्रबोध - घमण्ड को ही मान कहते हैं। लोग कहते हैं कि यह बहुत घमण्डी है। इसे अपने धन और ताकत का बहुत घमण्ड है। रुपया- पैसा, शरीरादि बाह्य पदार्थ टिकने वाले तो हैं नहीं, हम व्यर्थ ही घमण्ड करते हैं।

सुबोध - कुछ लोग छल-कपट खूब करते हैं?
प्रबोध - हाँ भाई! वह भी तो कषाय हैं, उसे ही तो माया कहते हैं। मायाचारी मर कर पशु होते हैं। मायाचारी जीव के मन में कुछ और होता है, वह कहता कुछ और है और करता उससे भी अलग है। छल-कपट लोभी जीवों को बहुत होता है।

सुबोध - लोभ कषाय के बारे में भी कुछ बताइये ?
प्रबोध - यह बहुत खतरनाक कषाय है, इसे तो पाप का बाप कहा जाता है। कोई चीज देखी कि यह मुझे मिल जाय, लोभी सदा यही सोचा करता है।

सुबोध- यह तो सब ठीक है कि कषायें बुरी चीज़ हैं, पर प्रश्न तो यह है कि ये उत्पन्न क्यों होती हैं और मिटें कैसे ?
प्रबोध - मिथ्यात्व (उल्टी मान्यता ) के कारण परपदार्थ या तो इष्ट (अनुकूल) या अनिष्ट (प्रतिकूल) मालूम पड़ते हैं मुख्यतया इसी कारण कषाय उत्पन्न होती है। जब तत्त्वज्ञान के अभ्यास से परपदार्थ न तो अनुकूल ही मालूम हो और न प्रतिकूल, तब मुख्यतया कषाय भी उत्पन्न न होगी।

सुबोध - अच्छा तो हमें तत्त्वज्ञान प्राप्त करने का अभ्यास करना चाहिए। उसी से कषाय मिटेगी।
प्रबोध- हाँ! हाँ !! सच बात तो यही है।

प्रश्न:

१. कषाय किसे कहते हैं ? कषाय को विभाव क्यों कहा ?
२. कषाय से हानि क्या हैं?
३. क्या कषाय आत्मा का स्वभाव है ?
४. कषायें कितनी होती हैं? नाम बताइये ।
५. कषायें क्यों उत्पन्न होती हैं? वे कैसे मिटें ?
६. आत्मा का स्वभाव क्या है?

पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त-वाक्य

१. जो आत्मा को कसे अर्थात् दुःखी करे, उसे कषाय कहते हैं।
२. कषाय राग-द्वेष का दूसरा नाम है।
३. कषाय आत्मा का विभाव है, स्वभाव नहीं।
४. आत्मा का स्वभाव जानना-देखना है।
५. क्रोध गुस्सा को कहते हैं।
६. मान घमण्ड को कहते हैं।
७. माया छल-कपट को कहते हैं।
८. किसी वस्तु को देखकर प्राप्ति की इच्छा होना ही लोभ है ।
९. मुख्यतया मिथ्यात्व के कारण परपदार्थ इष्ट और अनिष्ट भासित होने से कषाय उत्पन्न होती है।
१०. तत्त्वज्ञान के अभ्यास से जब परपदार्थ इष्ट और अनिष्ट भासित न हों तो मुख्यतया कषाय भी उत्पन्न न होगी।

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