बालबोध पाठमाला भाग २ | Balbodh Pathmala Part-2 [Hindi & English]

पाठ पहला: देव-स्तुति

वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, भविजन की अब पूरो आस।
ज्ञान भानु का उदय करो, मम मिथ्यातम का होय विनास।।
जीवों की हम करुणा पालें, झूठ वचन नहीं कहें कदा।
परधन कबहुँ न हरहूँ स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें सदा।।

तृष्णा लोभ न बढ़े हमारा, तोष सुधा नित पिया करें।
श्री जिनधर्म हमारा प्यारा, तिस की सेवा किया करें।।
दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार।
मेल-मिलाप बढ़ावें हम सब, धर्मोन्नति का करें प्रसार।

सुख-दुख में हम समता धारें, रहें अचल जिमि सदा अटल।
न्याय-मार्ग को लेश न त्यागें, वृद्धि करें निज आतमबल।।
अष्ट करम जो दु:ख हेतु हैं, तिनके क्षय का करें उपाय।
नाम आपका जपें निरन्तर, विघ्न शोक सब ही टल जाय ||

आतम शुद्ध हमारा होवे, पाप मैल नहिं चढ़े कदा।
विद्या की हो उन्नति हम में, धर्म ज्ञान हूँ बढ़े सदा।।
हाथ जोड़कर शीश नवावें, तुमको भविजन खड़े-खड़े।
यह सब पूरो आस हमारी, चरण शरण में आन पड़े।।

देव-स्तुति का सारांश

यह स्तुति सच्चे देव की है। सच्चा देव उसे कहते हैं जो वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हो। वीतरागी वह है जो राग -द्वेष से रहित हो और जो लोकालोक के समस्त पदार्थों को एक साथ जानता हो , वही सर्वज्ञ है। आत्महित का उपदेश देने वाला होने से वीतरागी, सर्वज्ञ, हितोपदेशी कहलाता है। वीतराग भगवान से प्रार्थना करता हुआ भव्य जीव सबसे पहिले यही कहता है कि मैं मिथ्यात्व का नाश और सम्यग्ज्ञान को प्राप्त कर, मिथ्यात्व का नाश किए बिना धर्म का आरंभ ही नहीं होता है । क्योंकि इसके बाद वह अपनी भावना व्यक्त करता हुआ कहता है कि मेरी प्रवृत्ति पाँचों पापों और कषायो में न जावे। मैं हिंसा न करुँ, झूठ न बोलूँ, चोरी न करुँ, कुशील सेवन न करुँ, तथा लोभ के वशीभूत होकर परिग्रह संग्रह न करुँ, सदा सन्तोष धारण किए रहूँ और मेरा जीवन धर्म की सेवा में लगा रहे।

हम धर्म के नाम पर फैलने वाली कुरीतियों, गृहित मिथ्यात्वादि और सामाजिक कुरीतियों को दूर करके धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में सही परम्पराओं का निर्माण करें तथा परस्पर में धर्म - प्रेम रखें।
हम सुख में प्रसन्न होकर फूल न जावें और दु:ख को देख कर घबड़ा न जावें, दोनों ही दशाओं में धैर्य से काम लेकर समताभाव रखें तथा न्याय-मार्ग पर चलते हुए निरन्तर आत्म-बल में वृद्धि करते रहें ।

आठों ही कर्म दुःख के निमित्त हैं, कोई भी शुभाशुभ कर्म सुख का कारण नहीं है, अत: हम उनके नाश का उपाय करते रहें। आपका स्मरण सदा रखें जिससे सन्मार्ग में कोई विघ्न-बाधायें न आवें।
हे भगवन्! हम और कुछ भी नहीं चाहते हैं, हम तो मात्र यही चाहते हैं कि हमारी आत्मा पवित्र हो जावे और उसे मिथ्यात्वादि पापोंरुपी मैल कभी भी मलिन न करे तथा लौकिक विद्या की उन्नति के साथ ही हमारा धर्मज्ञान (तत्त्वज्ञान ) निरन्तर बढ़ता रहे।
हम सभी भव्य जीव खड़े हुए हाथ जोड़कर आपको नमस्कार कर रहे हैं, हम तो आपके चरणों की शरण में आ गये हैं, हमारी भाव हो।

प्रश्न -
१. यह स्तुति किसकी है ? सच्चा देव किसे कहते है?
२. पूरी स्तुति सुनाइये या लिखिये ।
३. उक्त प्रार्थना का आशय अपने शब्दों में लिखिए ।
४. निम्नांकित पंक्तियों का अर्थ लिखिए:-

ज्ञान भानु का उदय करो, मम मिथ्यातम का होय विनास ।।
दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार । "
अष्ट करम जो दुःख हेतु हैं, तिनके क्षय का करें उपाय।"

पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त-वाक्य -

१. जो वीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हो, वही सच्चा देव है।
२. जो राग-द्वेष से रहित हो, वही वीतरागी है।
३. जो लोकालोक के समस्त पदार्थों को एकसाथ जानता हो, वही सर्वज्ञ है।
४. आत्म-हितकारी उपदेश देनेवाला होने से वही हितोपदेशी है।
५. मिथ्यात्व का नाश किए बिना धर्म का आरंभ नहीं होता।
६. आठों ही कर्म दु:ख के निमित्त हैं, कोई भी शुभाशुभ कर्म सुख का कारण नहीं है।
७. ज्ञानी भक्त आत्मशुद्धि के अलावा और कुछ नहीं चाहता।

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