अन्तर आनन्द के रसिया, तीर्थंकर नाथ हमारे।
मंगल मय मंगलकारी, सांचे मित्र हमारे॥
सांचे मित्र हमारे प्रभु जी लागे जग से न्यारे…
अन्तर आनन्द के रसिया ॥
सुरगण बालक रूप धर, प्रभु संग खेले खेल।
अनन्त गुणों को जोड़कर, चली मुक्ति की रेल ।
अरे सिद्धपुरी की सैर को चालो प्रभु संग सारे… ॥१॥
जनम मरण क्षय कारने, लियो है अन्तिम जनम्।
निजानन्द में केलि कर मेट दिये सब करम॥
सिद्धों सम साथी पाके जागे भाग्य हमारे… ॥२॥
तीन ज्ञान संग जनम ले खेले ज्ञान का खेल।
अनुभव के उद्यान में रहती चहल पहल ॥
समकित के क्रीड़ावन में निज चैतन्य निहारे… ॥३॥
रचनाकार: डॉ० विवेक जैन, छिंदवाड़ा