आनंद अंतर मा आज न समाये | Anand Antar Ma Aaj Naa Samaye

आनंद अंतर मा आज न समाये…
जनमे ऋषभकुमार खुला मुक्ति का द्वार।
तिहुँ लोक में आनंद छाया।

स्वर्ग पुरी से देवगति तज प्रभु ने नर तन पायो ।
धन्य धन्य मरूदेवी माता तीर्थंकर सुत जायो ।।
इन्द्र नगरी मा आये, मंगल उत्सव रचाये…
सारी धरती दुल्हन सी सजी जाये…आनंद अंतर मा आज न…

सोलह सपने मां ने देखे, मन में अचरज भारी।
नाभिराय से फल जब पूछा, उपजा आनंद भारी ।।
तीनों लोकों का नाथ, तेरे गर्भ में मात…
अनुभूति में दर्शन पाये…आनंद अंतर मा आज न

अंतिम जन्म लिया जब तुमने सुरपति द्वारे आये।
नेत्र हजार निहारे प्रतिक्षण तृप्त नहीं हो पाये ।।
गीत सुर बाला गायें, शची चौक पुराये…
नरकों में भी शान्ति छाये…आनंद अंतर मा आज न…

इस युग के प्रथम जिनेश्वर अंतिम भव को धारे।
स्वयं तिरे भवसागर से और हमको पार उतारे ।।
सब मिलकर के आये प्रभु दर्शन को पाये…
प्रभुता निज की पा जाये… आनंद अंतर मा आज न…

रचयिता - डॉ. विवेक जैन, छिंदवाडा

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