वीर जिनेश्वर ! अब तो मुझको, मुक्तिमार्ग बतलाओ | Veer Jineshwar, Ab to Mujhko Muktimarg Batlao

वीर जिनेश्वर ! अब तो मुझको, मुक्तिमार्ग बतलाओ।
निजको भूल बहुत दु:ख पाये, अब मत देर लगाओ।।

जाना नहीं आपको मैंने, पंच पाप में लीन हुआ।
आतमहित में रहा आलसी, विषयन माहिं प्रवीन हुआ।
छूटै विषय-कषाय प्रभो, ऐसा पुरुषार्थ जगाओ ।।(1)

पर में इष्ट-अनिष्ट ठानकर, हर्ष-विषाद सु-माना।
पर निरपेक्ष सहज आनन्दमय, ज्ञायकतत्त्व न जाना।
महिमावंत परम ज्ञायक प्रभु, अब मुझको दरशाओ ।।(2)

आस्रव-बंध हैं दुख के कारण, संवर-निर्जरा सुख के।
चतुर्गति दुखरूप अवस्था, सुख मुक्ति में प्रगटे।
अब तो स्वामी शिवपथ में, मुझको भी शीघ्र लगाओ।।(3)

ऐसी स्तुति करते-करते, इक दिन मन में आई।
कैसे अन्तस्तत्त्व ‘आत्मन्’, बाहर देय दिखाई।
प्रभो आपकी मुद्रा कहती, अन्तर्दृष्टि लाओ।।(4)

मुक्ति की सच्ची युक्ति पा, अपनी ओर निहारा।
प्रभु-सी प्रभुता निज में लखकर, आनन्द हुआ अपारा।
जागी यही भावना ‘आत्मन्,’ निज में ही रम जाओ।।(5)

दुष्टों से बच पितुगृह आकर, कन्या ज्यों हरषावे।
पितु भी उसको धूमधाम से, निज घर में पहुँचावे।
जग से त्रसित शरण त्यों आया, प्रभु शिवपुर पहुँचाओ।।(6)

Artist - ब्र० श्री रवीन्द्र जी आत्मन्


Sung by: Atmarthi Deshna Jain. (@Deshna)

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