साधर्मी के प्रति वात्सलय और राग में क्या अंतर है? क्या वात्सलय एक प्रकार का राग नहीं है?
मूल में राग के दो भेद
- प्रशस्त राग
- अप्रशस्त राग
प्रशस्त राग - जो राग के अभिप्राय में वीतरागता बनी हुई है उसे प्रशस्त राग कहते है।
जैसे जिनप्रतिमा के दर्शन करते " है प्रभु आपके जैसी दशा मेरी कब प्रगट होगी,में कब संसार से मुक्त होऊंगा।"
कोई साधर्मी को भोजन कराना,समाधिकराना ,इलाज करवाना इन सबके पीछे अभिप्राय है कि वे मोक्षमार्ग में आगे बढ़े और बाधा न हो।इसमे हमारा कोई निजी स्वार्थ नही हो यही वात्सल्य है।
मूल में ये है तो राग परंतु विकल्पात्मक अवस्था मे पाया जाता है।
अप्रशस्त राग - जो राग के पीछे अभिप्राय में वीतरागता नही है और सांसारिक इच्छा या अपना कोई निजी स्वार्थ हो वह अप्रशस्त राग में आएगा।
जैसे जिनप्रतिमा के दर्शन के पीछे कोई मनोकामना पूर्ण करनी हो वह इसी में आएगा।
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