रागों की हवेली में रहते आये हो तुम | श्री त्रिकालवर्ती अनन्त तीर्थकर जिन पूजन - जयमाला | Raago Ki Haveli Me

श्री त्रिकालवर्ती अनन्त तीर्थकर जिन पूजन - जयमाला

रचयिता - प. श्री राजमल जी पवैया

छंद-दिग्वधू

रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।
अतएव अनंते दुख सहते आये हो तुम।।

मिथ्या भ्रम मद पीकर चहुँगति में भ्रमण किया।
भव पीड़ा हरने को निज ज्ञान न हृदय लिया।।
भवदुख धारा में ही बहते आये हो तुम।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

सुख पाना चाहों तो सत्पथ पर आ जाओ।
तत्वाभ्यास करके निज निर्णय उर लाओ।।
भव ज्वाला के भीतर जलते आये हो तुम।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

पहिले समकित धन लो उर भेद ज्ञान करके
मिथ्यात्व मोह नाशो अज्ञान सर्व हर के ।।
शुभ अशुभ जाल में ही जलते आए हो तुम ।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम ।।

फिर अविरति जय करके अणुव्रत धारण करना।
फिर तीन चौकडी हर संयम निज उर धरना।।
बिन व्रत खोटी गति में जाते आये हो तुम ।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम ।।

अब दुष्ट प्रमाद नहीं आयेगा जीवन भर।
मिल जायेगा तुमको अनुभव रस का सागर ।।
निज अनुभव बिन जग में थमते आए हो तुम ।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम ।।

झट धर्म ध्यान उर धर आगे बढ़ते जाना ।
उर शुक्ल ध्यान लेकर श्रेणी पर चढ़ जाना।।
कर भाव मरण प्रतिपल मरते आये हो तुम ।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम ।।

फिर यथाख्यात लेकर घातिया नाश करना।
कैवल्य ज्ञान रवि पा सर्वज्ञ स्वपद वरना।।
निज ज्ञान बिना सुध बुध खोते आए हो तुम ।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम ।।

फिर अघातिया क्षय हित योगों को विनशाना।
कर शेष कर्म सब क्षय सिद्धत्व स्वगुण पाना।।
ध्रुवध्यान बिना भव में भ्रमते आये हो तुम।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

इस विधि से ही चेतन निज शिव सुख पाओगे।
शिव पथ खुलते ही झट शिवपुर में जाओगे।।
पर घर में रह बहुदुख पाते आये हो तुम।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

निज मुक्ति वधु के संग परिणय होगा पावन।
पाओगे सौख्य अतुल तुम मोक्ष मध्य प्रतिक्षण।।
शिवसुख भी भव जल में धोते आये हो तुम।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम ।।

लौटोगे फिर न कभी ध्रुव सिद्ध शिला पाकर।
ध्रुवधाम राज्य पाकर हो जाओगे शिवकर।।
अपने अनंत गुण बिन रोते आये हो तुम।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

आनन्द अतीन्द्रिय की धारा है महामनोज्ञ।
सिद्धों समान सब ही प्राणी हैं पूरे योग्य।।
अपना स्वरूप भूले क्यों बौराये हो तुम।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम ।।

निज ज्ञान क्रिया से ही मिलता है सिद्ध स्वपद।
सब ही त्रिकालवर्ती जिन तजते सकल अपद।।
निज पद तज पर पद ही भजते आये हो तुम ।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

जितने तीर्थेश हुए सबने पर पद त्यागे।
अपने स्वभाव में ही प्रतिपल प्रतिक्षण लागे।।
अब तक आस्रव को ही ध्याते आये हो तुम ।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

अवसर अपूर्व पाया निज का चिन्तन करलो।
तीर्थंकर दर्शन कर सारे बन्धन हरलो।।
जब भी अवसर आया खोते आये हो तुम ।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

मैं बार बार वन्दूँ तीर्थेश अनंतानंत।
चहुँगति दुख हर पाऊँ पंचमगति सुख भगवंत।।
पर के ही गीत सदा गाते आये हो तुम।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

सदगुरु की सीख सुनो फिर कभी न उलझोगे।
बोलो कब चेतोगे कब तक तुम सुलझोगे।।
कब से कल कल कल कल कहते आये हो तुम।
रागों की हवेली में रहते आये हो तुम।।

Singer: @shruti_jain1

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