जिन-प्रतिबिम्बका माहात्म्य - पं० बनारसीदास जी | Jin Pratibimb ka mahatmya

जिन-प्रतिबिम्ब का माहात्म्य
(सवैया इकतीसा)

जाके मुख दरस सौं भगत के नैननि कौं,
थिरता की बानि बढ़े चंचलता विनसी।
मुद्रा देखि केवली की मुद्रा याद आवे जहां,
जाके आगे इंद्र की विभूति दीसै तिनसी॥
जाकौ जस जपत प्रकास जग हिरदे में,
सोइ सुद्धमति होइ हुती जु मलिनसी।
कहत बनारसी सुमहिमा प्रगट जाकी,
सोहै जिनकी छवि सुविद्यमान जिनसी॥॥

-पं० बनारसीदास जी
(नाटक समयसार, अधिकार-13, छंद-2)

अर्थ:- जिसके मुख का दर्शन करने से भक्तजनों के नेत्रों की चंचलता नष्ट होती है और स्थिर होने की आदत बढ़ती है अर्थात् एकदम टकटकी लगाकर देखने लगते हैं, जिस मुद्रा के देखने से केवली भगवान का स्मरण हो पड़ता है, जिसके सामने सुरेन्द्र की सम्पदा भी तिनके के समान तुच्छ भासने लगती है, जिसके गुणोंका गान करने से हृदय में ज्ञान का प्रकाश होता है और जो बुद्धि मलिन थी वह पवित्र हो जाती है। पं० बनारसीदास जी कहते हैं कि जिनराज के प्रतिबिम्ब की प्रत्यक्ष महिमा है, जिनेन्द्र की मूर्ति साक्षात् जिनेन्द्र के समान सुशोभित होती है।


Singer: @Asmita_Jain

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