ज्यादा दोष किसमें?

ज्यादा दोष किसमें हैं - आलू खाने में या बिना छना पानी पीने में ?

बिना छना पानी का सेवन करने में।

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How? Please explain

त्रस घात में बहुघात से ज्यादा दोष बताया है। उसका भी कारण यह है कि त्रस पर्याय की प्राप्ति स्थावर पर्याय से अत्यंत दुर्लभ है। अतः जब हमारे अविवेक और प्रमाद के निमित्त से चिंतामणि के समान किसी जीव की त्रस पर्याय का घात हुआ होता है तब उसे बड़ा पाप बताया है।
एक कारण यह भी है कि अधिक प्राणों (कुल 10 प्राणों की बात यहां पर घटित करना) को प्राप्त जीवों के घात में उन जीवों को अधिक कष्ट होता है, अतः दोष भी अधिक होता है।
नोट - अनछने जल में त्रस जीवों के घात का पाप लगता है।

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द्रव्यानुयोग के आधार पर तो अविरति को भी सम्यक्त्व हो सकता है।

चरणानुयोग के आधार पर दोष का कम और ज़्यादा सप्रतिष्ठ और अप्रतिष्ठ वनस्पति के आधार पर होता है।

त्रसघात तो महापाप माना गया है।

उपर्युक्त दोनों में दोष समान है - दोनों अविरत दशा के दोष हैं। दोनों में से एक को भी “पहले छोड़ने जैसा और बाद में छोड़ने जैसा” - कुछ नहीं है।

एक नैतिक/साधक श्रावक को दोनों में छोड़ने हेतु अवस्था भेद मानना योग्य नहीं, शीघ्रातिशीघ्र छोड़ना चाहिए।

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अविरत - व्रत रहित
जैन दर्शन में आलू को छोड़ना या छने पानी का उपयोग करना ये कोई व्रत नहीं है। ये तो जैनी मात्र को होता ही है।
सम्यक्त्व की पात्रता के लिए इतना तो आवश्यक है।
सागार धर्मामृत में इस सबको 8 मूलगुण के अंदर लिया गया है।

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पानी में असंख्यात जीव होते हैं और
आलू में अनन्त जीव होते हैं। अब आप ही निर्णय कर लीजिए