आखिर मुनिराज इतने स्वस्थ कैसे???
(Part–1)
मुनिराजों को देखते ही हमारे मन में विचारों की तरंगें उठने लगती हैं कि हम इतना ठूस-ठूस कर भर-पेट खाते हैं, तब भी हम सीकड़ी मल और हट्टी पहलवान ही रहते हैं और साथ में अनेक बीमारियों का तौफा भी फ्री मिल जाता है और मुनिराजों को देखो तो, खाते मात्र एक बार वो भी थोड़ा-सा, लेकिन रहते एकदम स्वस्थ और निरोगी। आखिर हमारे साथ ऐसा अन्याय क्यों होता है??? इसप्रकार की अनेक विकल्प तरंगों से हमारा चित्त सदैव डोलायमान रहता है।
अरे भाई, यह अन्याय कोई दूसरा हमारे साथ नहीं करता है, अपितु हम स्वयं ही अपने साथ करते हैं, स्वयं ही स्वयं को ठगते हैं।
कैसे???
देखो साहब, वैद्य ने जिस पद्धति से औषधि का सेवन और अन्य वस्तु का परहेज बतालाया है, यदी उसी पद्धति को अपनाएंगे तभी स्वस्थ होगें। यदि हम औषधि का सेवन तो कर रहे हैं,परंतु वैद्य पद्धति से नहीं कर रहे और अनुपसेव्य वस्तुओं का परहेज भी नहीं कर रहे हैं, तो स्वस्थ कतई नहीं हो सकते हैं।
इसी प्रकार भरपूर मात्रा में भोजन तो कर रहे हैं, परंतु योग्य रीति से नहीं कर रहे और अनुपसेव्य वस्तु जैसे वीर्यपात(अब्रह्मचर्य, मैथुन) का त्याग भी नहीं कर रहे हैं, तो स्वस्थ कतई नहीं हो सकते हैं।
अर्थात स्वस्थ होने का रामबाण ऊपर वीर्य रक्षण करना, वीर्यपात/मैथुन/अब्रह्मचर्य कतई नहीं करना।
आखिर इस वीर्य में ऐसा है क्या???
आपका प्रश्न एकदम सही है; क्योंकि जब तक हम इसके निर्माण की दुर्लभता नहीं जानेगें तब तक उसकी रक्षा करने में भी उत्साहित भी नहीं होगें; अतः सर्वप्रथम वीर्य निर्माण की प्रक्रिया को देखते हैं। आयुर्वेद शास्त्रों में वीर्य निर्माण की प्रक्रिया निम्न प्रकार बतलाई है–
भोजन से रस बनता है, 5 दिन के बाद रस का रक्त बनता है, 5 दिन के बाद रक्त से मांस बनता है, 5 दिन के बाद मांस से मेद बनता है, 5 दिन के बाद मेद से हट्टी बनती है, 5 दिन के बाद हट्टी से मज्जा बनता है, 5 दिन के बाद मज्जा से वीर्य बनता है; इसप्रकार लगभग 30-32 दिन में वीर्य का निर्माण होता है।
परन्तु इस गलत फेमी में नहीं रहना की जितना भोजन किया था उतनी मात्रा में ही वीर्य बनेगा।अरे भाई इस में पूरा 50-60 गुणा का अंतर आता है, यथा-
● 1.133kg रक्त से 28g वीर्य (40 औंस रक्त से 1 औंस वीर्य)
● 80kg भोजन से 1.6kg रक्त से 20g वीर्य (2 मन खुराक से 2 सेर रक्त से 2 तोला वीर्य)– आयुर्वेदाचार्य पुनर्वसु
इस प्रकार मात्रा में किंचित भेद तो मिलता है परंतु इस में आपत्ति की बात नहीं है, क्योंकि दोनों कथनों की मात्रा में ज्यादा अंतर नहीं है।
यहाँ तो यह देखना है कि "थोड़ा सा वीर्य बनने में 40 से 60 गुणा रक्त लगता है।"
जरा-सा विचार कीजिए कि व्यक्ति एक सवा महीने की मेहनत द्वारा एक, डेड किलो रक्त से बने 20 ग्राम वीर्य को हस्तमैथुन, मैथुन, अब्रह्मचर्य द्वारा क्षण मात्र में बेकार कर देते हैं। फिर वीर्यपात करने के बाद पछताते हैं कि यह क्यों किया, आचार्य अमृत चंद्र देव ने आत्ममख्याति 72 गाथा की टीका में इसी मनोविज्ञान को परिलक्षित किया है,"परंतु अब पछताय होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।
यहाँ आपके मन में एक प्रश्न उठ रहा होगा कि उपर्युक्त बात प्रैक्टिकल सिद्ध नहीं हो रही है, क्योंकि जब एक बार वीर्यपात होने के पश्चात पुनः वीर्यपात भी हो जाता है; अतः आपकी यह बात असिद्ध हो जाती है कि एक सवा महीने की पूरी मेहनत को क्षण मात्र में बेकार कर देते हैं???
भाई आपकी बात एकदम सही होने पर भी उपर्युक्त बात असिद्ध नहीं होती है। इसके 2 कारण हैं–
- मान लीजिए कि हमारे वीर्यकोष में 20 ग्राम वीर्य है, हस्तमैथुन आदि कियाओं द्वारा लगभग 15 ग्राम वीर्यपात होता है। शेष बचा वीर्य दूसरी बार में निकल जाता है।
अच्छा साहब ऐसा है तो पूरा वीर्य दो बार में निकल गया, परंतु फिर पुनः प्रयास करने पर वीर्यपात देखा जाता है।
अरे भाई आपके निरीक्षण में थोड़ी सी कमी महसूस होती है। यदि आप बार-बार हस्तमैथुन आदि क्रियाओं द्वारा वीर्यपात करने का प्रयास करते हैं, तब आपको निष्फलता का ही सामना करना पड़ेगा; क्योंकि आपके वीर्यकोष में वीर्य शेष रहा ही नहीं।
यदि आप किंचित समय अंतराल के पश्चात वीर्यपात करने का प्रयास करें तो थोड़ी सफलता मिल सकती है; क्योंकि भोजन भी समयांतराल से किया था, तो उससे निर्मित्त वीर्य भी समय के अंतराल से निकल सकता है, इसमें कोई आपत्ति नहीं है।
अब आपका मन खुशी के मारे फूले नहीं समा रहा होगा, आपका अंतर मन बोल रहा होगा कि भाई अब तो कोई दिक्कत ही नहीं, क्योंकि वीर्य तो नया-नया बन ही रहा है, तो निकालो जितना मन चाहे।
भाई ऐसी स्वछंदता को ग्रहण करने से आपका शरीर और मन भी स्वछंद होकर अपनी स्वस्थता को छोड़ देगा।
कैसे???
वास्तविक वीर्य गाड़ा, श्वेत, पारदर्शी, चिकना होता है; परन्तु मैथुन, हस्तमैथुन आदि द्वारा वीर्य की quality घटती जाती है। अधिक वीर्यपात करने से वीर्य पानी की तरह पतला और अपनी चिकनाहट को भी खो बैठता है, साथ ही साथ वीर्य की शक्ति भी एकदम क्षीण हो जाती है। अत्यधिक हस्तमैथुन करने से वीर्य की शक्ति पूर्ण रूप से नष्ट हो जाती है, जिससे शरीर में नपुंसकता भी आ जाती है अर्थात संतानोत्पत्ति की सामर्थ्य नहीं रहती है।
बार-बार वीर्यपात करने से वीर्याशय खाली हो जाएगा। इसके बाद जो नया वीर्य बनेगा वह सबसे पहले वीर्याशय में ही जाएगा। पूरा नया वीर्य वीर्याशय में जाने के बाद शरीर के पोषण के लिए वीर्य बचता ही नहीं है। जिस कारण स्वास्थ्य निरंतर बिगड़ते ही जाता है।
इसी के साथ कुछ और भी हानि होती हैं जो इसप्रकार हैं–
•शरीर अंदर से खोखला हो जाता है।
•परिश्रम करने की शक्ति नहीं रहती है।
•सहनशीलता नष्ट हो जाती है।
•शीत और ऊष्णता को झेलने की समर्थ नहीं रहती हैं।
•स्मरण शक्ति हीन और बुद्धि मंद हो जाती है।
•किसी चीज में उत्साह नहीं रहता है और सर्वत्र आलस्य ही छाया रहता है।
•इन्द्रिय और मन कमजोर हो जाते हैं तथा वश में नहीं रहते हैं।
•शरीर दुबला और अनेक रोगो से ग्रसित हो जाता है।
•व्यक्ति अधिक बीमार होने लगता है।
•दुर्बल संतान की प्राप्ति।
यदि आप ऊपर बताए गए कारणों से लाभान्वित होना चाहते हो मैथुन, हस्तमैथुन द्वारा वीर्यपात अवश्य करें…। परंतु अपने विवेक से निर्णय नहीं किया तो हम भी नहीं जानते कि आपकी क्या दशा होने वाली है; अतः अपना विवेक अवश्य जाग्रत रखें…
वीर्य का स्थान –
इसमें 2 मत प्राप्त होते हैं–
पहले मत में तिल में तेल की भांति शरीर में वीर्य का स्थान बताया।
दूसरे मत के अनुसार वीर्य का एक विशिष्ट स्थान बतलाया है।
पूर्वोक्त प्रक्रिया द्वारा निर्मित वीर्य अंडकोष में उत्पन्न होता है। इस वीर्य की 2 धाराएं होती हैं, पहली बहिःस्राव धारा वीर्याशय में (यह वीर्याशय मलाशय और मूत्राशय के मध्य में होता है।) जाती है। हस्तमैथुन आदि द्वारा इस वीर्य को बाहर निकाल देते हैं;अतः इसे बहिःस्राव धारा नाम दिया है।
दूसरी अन्तःस्राव धारा रक्त के साथ मिलकर सम्पूर्ण शरीर में फैल जाती है।
सबसे पहले हमारा वीर्याशय भरता है, उसके बाद यदि अंडकोष में वीर्य बचा रहे तो वह वीर्य अन्तःस्राव धारा द्वारा शरीर में पहुँचकर, शरीर और मन को स्वस्थ बनाता है।
वीर्यपात होने के कारण
मैथुन 3 प्रकार का होता है।
1)मानसिक
2)वाचिक
3)कायिक
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सबसे खतरनाक मानसिक मैथुन होता है। भले ही इसमें वीर्यपात नहीं होता, तथापि शरीर और मन को सबसे अधिक हानि पहुंचता है। मानसिक मैथुन से भी वीर्य नष्ट होता है। वीर्य के समीप अनेक छिद्र होते हैं, मानसिक मैथुन से शरीर में उत्तेजना और ऊष्णता बढ़ती है, गर्मी से वीर्य पिघलकरवीर्य वाहिनी शिराओं द्वारा अंडकोष की ओर दौड़ने लगता है, जिससे धीरे धीरे वीर्य निकलना प्रारम्भ हो जाता है तथा गर्मी से वह वीर्य छोटे-छोटे छिद्रों के माध्यम से बाहर निकल जाता है।
मानसिक विकार से स्वप्नदोष अधिक होते हैं। -
वाचिक से आप सभी परिचित है ही।
3)कायिक मैथुन भी 3 प्रकार का है–
1.स्त्री सहवास
2. हस्तमैथून
3.स्वप्नदोष
स्त्री सहवास और हस्तमैथून से तो आप सभी चिर अनुभूत है ही।
स्वप्नदोष होने के भी अनेक कारण हैं :–
● दिन में जो बुरे विकल्प किए थे, उससे जो वीर्य अंडकोष में आया था, वही रात में निकलता है।
● हस्तमैथुन की लत वाला व्यक्ति किसी दिन किसी कारण वश हस्तमैथुन नहीं कर पाया, तो उसको वीर्यपात के पूर्व संस्करों के वश से रात्रि में स्वप्नदोष अर्थात वीर्यपात होता है।
● जब वीर्याशय पूरा भरा हो, तभी मलाशय और मूत्राशय भी भर जाए और इन्हें खाली नहीं करें, तब इनका दबाब वीर्याशय पर पड़ने से स्वप्नदोष होता है; अतः मल, मूत्र को कभी भी नहीं रिकना चाहिए और रात्रि में करके सोये।
●अतृप्त कामेच्छा के कारण भी होता है।
● मूत्र में होने वाली जलन वीर्याशय में भी जलन उत्पन्न करती है, जिससे स्वप्नदोष होता है।
● सोने से पहले अधिक भोजन करने से भी स्वप्नदोष होता है।
मुनिराज के पास भी अमूल्य निधिवान वीर्य होता है, जिसका दुरुपयोग न करके पूर्ण रूप से सदुपयोग करते है, ब्रह्मचर्य के बल से पहली बहिः स्राव धारा नहीं चलती है, दूसरी अन्तः स्राव धारा द्वारा सम्पूर्ण वीर्य शरीर को पोषित करता है।
इसलिए मुनिराज अल्पाहार करते हुए स्वस्थ एवं निरोगी रहते हैं । इतना ही नहीं, अपितु इस अमूल्य निधिवान वीर्य से
•मन प्रसन्न रहता है।
•स्मरण शक्ति तीव्र होती है।
•शीतोष्ण आदि परिषह को सहन करनी सामर्थ्य जाग्रत होती है।
•आलस्य, तन्द्रता नहीं रहती है।
•रोग निरोधक क्षमता जाग्रत होती है।
•इन्द्रियाँ सबल होती हैं।
•अंग-प्रत्यंग सुदृढ़ होते है।
•सहनशीलता की वृद्धि होती है।
•क्रोधादि कषाय अत्यंत मंद होती है, इत्यादि
ब्रह्मचर्य के बल से वीर्य की पूरी शक्ति शरीर को मिलती है। जिस कारण शरीर की शक्ति को अनुपादेय मानने वाले और शरीर को कृष करने में सतत तत्पर मुनिराजों का शरीर ऊपर कहे गए लाभों से लाभान्वित होता है।
(मुनिराज को वीर्यपात नहीं होता क्या???
क्या काम वासना स्वभाविक नहीं ??? इसी प्रकार के अनेक प्रश्न आपके मन में उठ रहे होंगे, तो उनके समाधान हेतु अगला लेख अवश्य पढ़ियेगा…)
– अमन शास्त्री, लोनी