आत्मसिद्धि गाथा 19 के कथन की अपेक्षा क्या है?

જે સદગુરુ ઉપદેશથી, પામ્યો કેવળજ્ઞાન;
ગુરુ રહ્યા છદ્મસ્થ પણ, વિનય કરે ભગવાન. ૧૯

जिनके उपदेश के निमित्त से केवलज्ञान की प्राप्ति हुई, वे गुरु छ्द्मस्थ है फिरभी केवली भगवान उनका विनय करते है।

केवली भगवान को किसीका विनय करना संभव है?
इस कथन की अपेक्षा क्या है ?

( *सिर्फ कथन की अपेक्षा समझने हेतु ये प्रश्न है)

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इस दोहे का अर्थ गुरुदेव श्री ऐसा करते कि जब शिष्य को केवल ज्ञान होता है,तब उसकी ज्ञान पर्याय में वो अवस्था झलकती है, जब वो गुरु को नमस्कार करते थे।इस द्रष्टि से इसका अर्थ समझना
ही उपर्युक्त है,क्योकि दिगम्बर परम्परा में भगवान से बढ़कर गुरु महत्व नहीं है।

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@aman_jainजी
ये अपेक्षा मैंने सुनी है पर convincing नहीं लग रही,
क्योंकि श्वेताम्बर में ऐसी कथा आती है कि
शिष्य गुरु को कंधे के ऊपर बैठाकर ले जा रहे थे और उस दौरान गुरु के उपदेश के निमित्त से केवलज्ञान हुआ, फिर गुरु को नीचे उतारकर विनय करके कहा कि आपकी कृपा से मुझे केवलज्ञान हुआ है।

अब, श्रीमदजी ज्ञानी थे ही इसमें कोई दो राय नहीं है।
फिर उन्होंने श्वेताम्बर मान्यता से प्ररूपित इस बात को आत्मसिद्धि में क्यों लिया !?

केवली भगवान किसी का विनय नहीं करते, उनको स्पर्श नहीं कर सकते, वे किसी से बात नहीं करते, सिर्फ दिव्य ध्वनि खिरती है।

गाथा में स्पष्ट रूप से श्वेताम्बर मान्यता वाली बात को ही कहा है।

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श्रीमद् रायचंद्र जी के साहित्य का गहराई से अवलोकन किया जाए तो पता चलता है कि उनके साहित्य पर श्वेताम्बर साहित्य का प्रभाव पड़ा है, क्योंकि वह पहले श्वेताम्बर धर्म से संबंधित रहे हैं।

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