जिनशासन का प्रचार

हमारे जैन धर्म कि population बहुत कम है। Approx 50 lac . यह बहुत ही चिंता का विषय है। जिन धर्म का पूरे विश्व
मे कैसे प्रचार किया जा सकता है। हम जैन धर्म को विश्व धर्म कैसे बना सकते है। हम जो भी प्रचार करते सब जैनियो मे ही करते । हम non -Jain को हमारे गुरूदेव श्री के तत्वप्रचार के mission से कैसे जोडे.। क्या यदि हम संकल्प ले कि हम यदि हम अपने जीवन मे 5 लोगो को भी जैनी बनाएगे, तो क्या हमारा mission पूरा नही होगा। हमारे प्राचीन धरोहर खंडहर मे बदलते जा रहे ,मेने कल ही एक post देखी जिसमे हमारी जिनेन्द भगवान की प्रतिमा को शिव प्रतिमा मे बदल दिया गया। हमारा गिरनार हमारे हाथ से चला जा रहा है। यह सब देखकर मन अंदर से व्यथित हो जाता है। मै इस problem को इस forum पर रखने का ये ही कारण हे कि इस पर max youth है। और हम
Youth मे ही इतनी ताकत है कि हम बहुत बडा transformation ला सकते है। हम आज से तत्वप्रचार मे क्या, कैसै , अपना योगदान दे सकते स्पष्ट उल्लेख कीजिए?

1 Like

हम दिन भर अजैनो के ही बीच में रहते है -
१) दयालु बनो, हिंसा तजो - तो लोग कहेंगे की जैन बड़े ही नम्र दिल वाले होते है, कुछ भी हिंसा का काम नहीं करते, हाँ ! वो उनके भगवान् महावीर का जियो और जीने दो का उपदेश है ।
२) झूट मत बोलो, पर निंदा मत करो - तो लोग कहेंगे क्या तुम्हे किसी से कोई शिकायत नहीं, मैंने तुम्हे किसी की बुराई करते कभी नहीं सुना, क्या सब जैन ऐसे ही होते है
३) चोरी, बेईमानि मत करो - तो लोग कहेंगे की जैन समाज ऊँचे लोगो का समाज है इसमें चोर लफंगे नहीं होते
४) युवतियों पर दृष्टि मत करो, उनपर टिपण्णी मत करो, उनकी चर्चा में रूचि मत दिखाओ - तो लोग कहेंगे की ये गर्ल फ्रेंड बगरह बनानां जैनो के बस का नहीं, वे तो सीधे साधे लोग होते है, जैनो में तो अरेंज मैरिज ही होती है न
५) पैसा, गाडी, ठाट बाट, चमक धमक में लम्पटी मत बनो - तो लोग कहेंगे जैनी बहुत सिंपल होते है

ऐसा आचार-व्यवहार देखकर अजैन लोग खुद ही कहेंगे कि भाई सबसे ज्यादा शांति अगर है तो वह जैन धर्म में है, पर ऐसा ही एक्सपेक्ट करना ठीक नहीं क्योंकि कोई ऐसा भी कहेगा कि तुमसे बड़ा गधा हमने कहि नहीं देखा । और अगर ५ लोगो को जैन बनाने जाओगे, तो खेद खिन्न होकर द्वेष कर बैठोगे क्योंकि हर किसी के धर्म में रूचि नहीं होती । और जैन धर्म को विश्व धर्म बनाने का काम तो महा महिम महापद्म तीर्थंकर ही कर सकते है क्योंकि बड़ा काम बड़े लोग ही कर पाते है, अब कुछ ही वर्षो में उनका जन्म होगा, उनका जन्मोत्सव देखकर ही न जाने कितने लोग कुधर्म को छोड़कर जैन बन जायेंगे | This is my view only

4 Likes

आपकी बात से सहमत हुँ। हमारा महानतम जैन धर्म शाशवत है। अनादिनिधन है। लेकिन मे really एक बात कहुँ। मेरी चिंता वो नही है। आज foreign मे हजारो लोग है जो Indian phylosoply से प्रभावित है, लेकिन उन्हे हम approach
नही कर पाते क्योकि हम उदासीन है। मेरी recently, Italy से ,Claudia pestorino से बात हुई जो Jainism मे convert हुई। वे बोली resources नही होने के कारण वह कुछ नही कर पा रही। It’s required lot of mentorship…
Other religions कि growth rate 20-30 % है। फिर हम expansion मे उदासीन क्यो है ? बहुसंख्यकता मे power है। According to my point of view ये future के लिए अच्छा नही है।

2 Likes

18000 thousand years ka pancham kaal बचा hai, phir 6th kaal आएगा,उसके बाद तीर्थंकर होंगे. “कुछ ही वर्षो” का क्या मतलब‌ है ?

Muze bhi ekdam yahi vichaar aaata hai…le apna Jain dharma se sabka laabh ho…Europe, US main hum log prabhavana kar sakte hain…aur sahi hai ki resources nahi hai…ispe bahut kaam karna padega, yeh ek aadmi ka kaam nahi hai…isme pura team shamil ho kar ekdam targert oriented bankar resources banao, fir logon main pesh karo

1 Like

आज की आवश्यकता अजैनो को जैन बनाने की नहीं है | जैनों को जैनत्व का भान करवाने की ज्यादा दिखाई पड़ती है | इस पुरे भारत में मुझे हर शहर में इतने जैन दिखते हैं जिनके नाम में तो जैन होता है किन्तु आचरण में जैनत्व नहीं |

जिनशासन का प्रचार यदि कही करना है तो अपने घर में सबसे पहले कीजिये | इसकी सीरीज कुछ इस प्रकार बन सकती है -

  • क्या मैं एक सच्चा जैन हूँ? क्या मैं श्रावक के ६ आवश्यकों का पालन पूर्णता से कर रहा हूँ? कही मेरे आचरण से जैन धर्म की अप्रभावना तो नहीं हो रही ?
  • जैसे ही ऊपर के सब उत्तर मिल जाएँ, चलिए अपने परिवार की ओर | क्या मेरी पत्नी-बच्चे, माता-पिता, भाई-बहन जैनत्व को सही से संभल रहे हैं ? ऐसा क्या है जिससे मैं इनका स्थितिकरण कर सकता हूँ ?
  • अब चलते हैं अपने जैन रिश्तेदारों और जैन मित्रों की ओर | क्या मेरी बुआ-मौसी, काका-काकी ६ आवश्यक पाल पा रहे हैं ? क्या मेरे जैन मित्र दूसरे शहर में जाकर, पढ़ाई-नौकरी की व्यस्तता में भी धर्म पाल पा रहे हैं ? कही उन्हें कोई परेशानी तो नहीं ? मैं कैसे उनकी मदद कर सकता हूँ?
  • जब ऊपर वाला बिंदु सुलझ जाये तब सोचिये अजैनों को जैन बनाने का |

जैसा की आपने कहा की युवाओं में इतनी शक्ति है की वो जैन धर्म का प्रचार कर सकते हैं | ये सच है लेकिन तब ही जब ये शक्ति सही दिशा में लगे | आज कितने ही युवा रात्रि भोजन, जमीकंद खाना, यहाँ तक की शराब आदि वाली पार्टियों में जाना जैसे कार्य जो एक जैन को शोभा नहीं देते करते दिखाई देते हैं | सिर्फ नाम में “जैन” लगाने वाले मैंने बहुत देखें हैं, कर्म से जैनों की संख्या तो लाखों में भी दिखाई नहीं देती |
जैन धर्म की सच्ची प्रभावना यदि कोई करना चाहता है तो सबसे पहले अपने अंदर जैन धर्म की स्थापना करे | जीवंत example बनने की जरूरत है | पूज्य गुरुदेवश्री के द्वारा जो प्रचार हुआ है वह उनके ज्ञान और आचरण से हुआ है | वे लोगो के पास नहीं गए थे प्रचार करने | लोग स्वयं सोनगढ़ आकर गुरुदेवश्री के जीवन से प्रभावित होकर जैन हो गए |
सिर्फ एक महापुरुष के जीवन से लाखों जैन हुए | तो सोचिये अगर एक परिवार में ५ सदस्य हैं जिनका आचरण जैन धर्म के अनुकूल है तो उनके जीवन से कितने लोग प्रभावित हो सकते हैं |
ऐसे कई जैन परिवार मिलें तो प्रभावना का स्तर कितना होगा | फिर तो जैन ही क्या अजैन भी जैन बनने से खुद को नहीं रोक पाएंगे |

इसलिए शुरुवात अपने घर से करें | स्वयं से करें | प्रभावना होना न होना तो भवितव्य के आधीन है और वह तो महापुण्यशाली होगा जिसे जिन धर्म सच्चा लगेगा और उसकी महिमा आएगी |

"आराधक ही प्रभावक है"

10 Likes

जैन दर्शन शब्दों का मार्ग नहीं, साधना का मार्ग है।

4 Likes

आराधक ही प्रभावक है।
ये बात बिल्कुल सटीक है।
आराधक बनने से प्रभावना होती ही है।
आराधना किये बिना प्रभावना भी ठीक नही होगी।

प्रथम कर्तव्य आत्मकल्याण है, अगर यह एक कार्य सम्पन्न हुआ है तो ही अन्य कार्यों में प्रवर्तन करना योग्य है।

4 Likes