परद्रव्य सुख दुख का कारण सम्यग्दृष्टि को कैसे नहीं?

सम्यग्दृष्टि को परद्रव्य सुख दुख के कारण कैसे भासित नहीं होते हैं, जबकि हमारे जैसे संसारी जीव तो निरंतर परद्रव्य को ही सुख दुख का कारण मानते रहते हैं? कृपया विशेष उदाहरण सहित स्पष्ट करें।

सम्यग्दृष्टि जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है कि जिसकी दृष्टि सम्यक अर्थात् शुद्ध, साफ, सही हो गयी है।
हम संसारी मिथ्यादृष्टि जीवों की दृष्टि में यही बसा है कि परद्रव्य हमें सुखी दुखी करता है। परंतु हमारी दृष्टि सही नहीं है क्योंकि बाहर की परिस्थितियां कई बार अलग होती हैं और हमारा reaction अलग।
बस सम्यगदृष्टि जीव भी उसी रिएक्शन को change कर लेता है और दूसरों को अपने सुख दुख का कारण नहीं मानता।

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पंडित टोडरमल जी कृत मोक्षमार्गप्रकाशक के चौथे अधिकार में इष्ट अनिष्ट की मिथ्या कल्पना का विवरण दिया हुआ है। वहाँ से स्पष्ट जान सकते हैं।

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अकेले सम्यकदृष्टि को ही नही… जीव मात्र को पर द्रव्य सुख दुख का कारण नही है। ऐसी ही वस्तुस्तिथि है।

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सम्यकदृष्टि जीव का तो श्रद्धान और ज्ञान का वस्तुस्तिथि से मिलान है परंतु मिथ्यादृष्टि जीव का विपरीत श्रद्धान ज्ञान है।
चारित्त मे भी सम्यकदृष्टि के मिथ्यात्व एवं यथायोग्य राग-द्वेष रूप कषाय का अभाव है एवं पर द्रव्य के प्रति भूमिकानुसार अस्थिरता संबंधी राग द्वेष विद्धमान भी है जो गुणस्थानों के बढ़ते हुए क्रम मे क्रमश कम होते होते अभाव को प्राप्त होते हैं।
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जीव को सुख दुख का संबंध श्रद्धा ज्ञान और चारित्त के परिणमन से है, पर द्रव्य से नहीं।

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