समयसार पद्यानुवाद | Samaysar Padyanuvad

आस्रव अधिकार

मिथ्यात्व अविरति योग और कषाय चेतन-अचेतन ।
चितरूप जो है वे सभी चैतन्य के परिणाम हैं।।१६४।।
ज्ञानावरण आदिक अचेतन कर्म के कारण बने ।
उनका भी तो कारण बने रागादि कारक जीव यह ।।१६५।।
है नहीं आस्रव बंध क्योंकि आश्रवों का रोध है।
सद्दृष्टि उनको जानता जो कर्म पूर्वनिबद्ध है।।१६६।।
जीवकृत रागादि ही बंधक कहे हैं सूत्र में।
रागादि से जो रहित वह ज्ञायक अबंधक जानना।।१६७।।
पक्व फल जिस तरह गिरकर नहीं जुड़ता वृक्ष से ।
बस उसतरह ही कर्म खिरकर नहीं जुड़ते जीव से।।१६८।।
जो बंधे थे भूत में वे कर्म पृथ्वीपिण्ड सम।
वे सभी कर्म शरीर से हैं बद्ध सम्यग्ज्ञानि के।।१६९।।
प्रतिसमय विध-विध कर्म को सब ज्ञान-दर्शन गुणों से।
बाँधे चतुर्विध प्रत्यय ही ज्ञानी अबंधक इसलिए।।१७०।।
ज्ञानगुण का परिणमन जब हो जघन्यहि रूप में।
अन्यत्व में परिणाम तब इसलिए ही बंधक कहा।१७१।।
ज्ञान-दर्शन-चरित गुण जब जघनभाव से परिणमें ।
तब विविध पुद्गल कर्म से इसलोक में ज्ञानी बंधे।।१७२।
सद्दृष्टियों के पूर्वबद्ध जो कर्म प्रत्यय सत्व में ।
उपयोग के अनुसार वे ही कर्म का बंधन करें।।१७३।
अनभोग्य हो उपभोग्य हों वे सभी प्रत्यय जिसतरह।
ज्ञान-आवरणादि बसुविध कर्म बाँधे उसतरह।।१७४।।
बालबनिता की तरह वे सत्व में अनभोग्य हैं।
पर तरुणवनिता की तरह उपभोग्य होकर बाँधते।।१७५।।
बस इसलिए सद् दृष्टियों को अबंधक जिन ने कहा।
क्योंकि आस्रवभाव बिन प्रत्यय न बंधन कर सके।।१७६।।
रागादि आस्रवभाव जो सद् दृष्टियों के वे नहीं।
इसलिए आस्रवभाव बिन प्रत्यय न हेतु बंध के।।१७७।।
अष्टविध कर्मों के कारण चार प्रत्यय ही कहे।
रागादि उनके हेतु हैं उनके बिना बंधन नहीं।।१७८।।
जगजन ग्रसित आहार ज्यों जठराग्नि के संयोग से।
परिणमित होता बसा में मज्जा रुधिर मांसादि में ।।१७९।।
शुद्धनय परिहीन ज्ञानी के बंधे जो पूर्व में ।
वे कर्म प्रत्यय ही जगत में बांधते हैं कर्म को।।१८०।।

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