जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


3. आत्मार्थी प्रवास :arrow_up:

1. गुरुजनों की बिना आज्ञा कोई कार्यक्रम न बनायें। आज्ञा पालन का अतिरिक्त प्रदर्शन न करें।

2. श्रावकों पर व्यवस्था का अतिभार न डालें। उनकी परिस्थिति एवं समय का भी ध्यान रखें। दूसरों की निंदा या हीनता न करें। तुलना करके स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयत्न न करें।

3. अपने त्याग का रौब न दिखायें।

4. अकेली महिलाओं की कक्षा न लें। न कक्षाओं में महिलाओं को मुख्य करें। निकट खड़े होकर बातचीत न करें। फोन पर धार्मिक चर्चा भी अति आवश्यक होने पर अत्यंत सीमित करें। भीड़ में न घुसें । अशक्यता छोड़कर घरों में नहीं रुकें। नव बाड़ों का पालन अवश्य करें।

5. निर्लज्जता पूर्वक नग्न बैठना आदि निंद्य कार्य न करें।

6. अनावश्यक सामग्री (उपहार में भी) न लें । ली हुई सामग्री एवं नगदी आदि की रिपोर्ट तैयार करें।

7. अनावश्यक अत्यधिक सेवा न करायें।

8. अपनी भाषा, चर्या, स्वच्छता, सहनशीलता, परोपकारी वृत्ति, अनुशासन, सरलता आदि द्वारा आदर्श प्रस्तुत करें।

9. अनावश्यक पानी न फैलाएं। बिजली न जलाएं। अन्य अनर्थदण्डों से बचें।

10. मेला, बाजारादि में बार-बार न जायें।

11. प्राकृतिक या अन्य चिकित्सा का पक्ष लेकर अष्टमी, चतुर्दशी, अष्टान्हिका, दशलक्षण, रत्नत्रय आदि धर्म पर्वो में भी हरी सब्जियाँ, फल आदि लेना, अंजीर, अनन्नास, पालक या अभक्ष्य पदार्थ आदि लेना कदापि उचित नहीं।

12. स्वाध्याय एवं अध्ययन द्वारा अपनी योग्यता विशुद्धि बढ़ाते रहें।

13. अपना स्वाध्याय, पाठ, चिंतन, जपादि नियत समय पर करें। अपनी चर्या अव्यवस्थित करके कोई कार्यक्रम न करें।

14. मनमानी भावुकता पूर्ण व्याख्यायें न करें। हल्के दृष्टांत न दें। निर्देशिकाओं का पुनरावलोकन करते रहें।

15. अखबार एवं अन्य हल्की पुस्तकें न पढ़े। सीरियल, क्रिकेट मैच, चुनाव परिणाम आदि रुचि पूर्वक विशेष रूप से न देखें।

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