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प्रात:शीघ्र (ब्रह्ममुहूर्त में) अवश्य उठ जावें। उठकर णमोकार मंत्र, ओम् आदि का योग विधि से उच्चारण करें। पंचपरमेष्ठी एवं तत्त्वों का चिन्तन करें। अपने साध्य की प्राप्ति के संकल्प को दोहरायें। आत्म स्वभाव (ध्येय) को लक्ष्य में लें।
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आज की तिथि, पर्व, विशेष नियम, कार्य आदि का निर्णय करें।
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विधिपूर्वक शौच, स्नानादि से निवृत्त हो, प्राणायाम योग के माध्यम से प्रसन्न एवं एकाग्र हो,समय की सुविधानुसार एकांत में व्यक्तिगत स्वाध्याय, पाठ, जप, ध्यान आदि करें।
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उत्साह पूर्वक यथासम्भव जिनदर्शन, पूजानादि के लिए जिनमंदिर जावें । वहाँ मात्र रूढ़ि से जिनदर्शन, पूजनादि न करें, व्यवस्थाओं में भी सहयोगी बनें । यत्नाचार एवं विवेक पूर्वक स्वाध्याय, जिनमंदिर की स्वच्छता एवं मर्यादा, अतिथि सेवा, साधर्मी वात्सल्य, पाठशाला, तात्कालीन कार्यक्रमों में सक्रिय सहयोग दें।
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जहाँ और जब जिनमंदिर में साक्षात् दर्शन का योग न बन सके, वहाँ भी नियत समय पर यथाशक्ति एवं यथायोग्य जिनभक्ति, पाठ, स्वाध्याय एवं चिन्तनादि में प्रमाद एवं बहाना छोड़कर प्रवर्ते ।
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नियत समय पर संयम एवं स्वास्थ्य के अनुकूल शुद्ध भोजन, क्षेत्र एवं वस्त्रादि की शुद्धि पूर्वक करें।
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विद्यार्जन, व्यापार, सेवा आदि समस्त कार्य अनुशासन सहित, निष्ठा पूर्वक, समय पर करें।
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अधीरता, उत्तेजना, भावुकता, अनैतिकता, प्रमाद से दूर रहें।
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अपनी हर वस्तु नियत स्थान पर व्यवस्थित ढंग से रखें। गंदगी न फैलायें ।
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शाम को सूर्यास्त से पूर्व ही भोजन-पानी से निवृत्त हो जावें।
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रात्रि में कीड़ों की हिंसा को बचाते हुए लाइट का कम से कम प्रयोग करें।
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अपने काम निपटाते हुए भक्ति, स्वाध्याय, पाठ, चिन्तनादि अवश्य करें।
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नियत समय पर योग निद्रा पूर्वक रात्रि विश्राम करें।
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बिना किसी कारण से देर तक जागना स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। प्रात: जल्दी उठकर कार्य करने की वृत्ति बनायें।
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सोने के पूर्व दिनभर का निरीक्षण कर दोषों के दूर करने का उपाय विचारें, मात्र प्रायश्चित ही पर्याप्त नहीं है। दोषों के कारणों का भी निवारण करें।
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दूसरे दिन की योजनानुसार तैयारी करते हुए निश्चिंत होवें।
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हिंसात्मक, विलासितापूर्ण, शील एवं पद विरुद्ध वस्त्र न पहनें और न ऐसी प्रसाधन सामग्री का उपयोग करें। जैसे - चर्बीयुक्त साबुन, शैम्पू, क्रीमें, सुगन्धित बाजारू तेल, टूथपेस्ट आदि हिंसक सामग्री से बचें।
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पारदर्शी, अधिक नीचे-ऊँचे, कसे, अधिक ढीले, विविध डिजायन के या काले, अत्यंत गहरे रंगों के कपड़े न पहनें।
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अत्यंत महंगे कपड़े, जूते, बैल्ट, टाई आदि न पहनें। वस्त्रादि को बड़प्पन का आधार न बनायें।
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अनावश्यक संग्रह न करें।
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समय से पहले ही वस्त्र बनवा लेवें।
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कुछ शुद्ध वस्त्र धुले हुए रखे रहने दें, जिससे अचानक किसी साधर्मी या त्यागी के आ जाने पर काम आ सकें।
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बच्चों को भी अत्याधुनिक कपड़े न पहिनायें।
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रेशमी वस्त्रों का त्याग करें। पोलिस्टरादि, सिंथेटिक, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्त्रों से भी यथासम्भव बचें।
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मल-मूत्र सोखने वाले वस्त्र चड्डी (डायपर) न पहनें, न बच्चों को पहिनायें (अति आवश्यक परिस्थिति छोड़कर)।
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अपने अनुपयोगी वस्त्रों को दूसरे जरूरतमंद लोगों में बाँट दें, परन्तु बहुत फटे बेढंग के न हों।
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अपने पद, स्थान, शील आदि का ध्यान रखते हुए, उचित वेशभूषा ही पहनें, कभी-कैसी कभी-कैसी डिज़ायने न बदलें।