चतुर्थ गुणस्थान में शुद्धोपयोग और सम्यक्चारित्र


- प्रवचनसार, गाथा 86 की तात्पर्यवृत्ति टीका की उत्थानिका (आचार्य अमृतचन्द्र की टीका में यह गाथा 80 नं. पर है)

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